Saturday, March 20, 2010

GoBible.org Lesson 11The Fruit of the Spirit is Righteousness/आत्मा का फल धार्मिकता


The Fruit of the Spirit is Righteousnessआत्मा का फल धार्मिकता 
(Ephesians इफिसियो 5,Romans रोमियो 3 And तथा 5, 1 John 2 1 यूहन्ना 2)  
Copr. 2010, Bruce N. Cameron, J.D.  All scripture references are to the New International Version (NIV), copr. 1973, 1978, 1984 International Bible Society,  unless otherwise noted. Quotations from the NIV are used by permission of Zondervan Bible Publishers. link: http://www.GoBible.org.  Pray for the guidance of the Holy Spirit as you study.
परिचय: हर हफ्ते हमने आत्मा के फल जो गलातिओं 5:22 में है पढ़ रहें थे. पिछले हफ्ते हम गलातिओं की लिस्ट के अंत में आ गए थे, तुम आश्चर्य कर रह होगे के हमें आत्मा के फल अन्य जगह कहाँ मिले? हमें "प्रकाश के वृक्ष" में प्राप्त हुए. इफिसिओं 5:22 कहता है " कि प्रकाश के फल में पूरी अच्छाई, धार्मिकता एवं सत्य है" परचून की दुकान, कुछ दिनों से "हलके" खाने की वस्तुओं की मांग है.यह वो खाना है जो हाँ लोगों के लिए स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है. चलो हम एक बार फिर बाइबिल अध्यन में लग जाते हैं और पता करते है कि "हल्का" आत्मिक फल का क्या मतलब है, यह फल धार्मिकता कहलाता है.  
I.         धार्मिकता की खोज
A. पढ़े रोमियो 3:21-24. हम कैसे धर्मी बनते है? ( यह परमेश्वर की तरफ से आता है, यह मुफ्त है,और इसमें यीशु के ऊपर विश्वास की जरूरत है.)

A. पढ़े रोमियो 3:25-28. क्या हम 10 नियमों का पालन करने से धर्मी बन जाते है? (नहीं. यदि हम नियम रखते है हमारे पास कुछ गर्व करने के लिए है. लेकिन, धार्मिकता विश्वास से आती है - और हम दूसरे (यीशु) के कार्य में गर्व नहीं कर सकते है. हमको दो बार बातया गया है यह धार्मिकता नियमों के पालन करने से अलग है.)   
A. पढ़े रोमियो 5:17-19. बाइबिल किस की आज्ञाकारिता के कार्य बारे में कह रही है? (यीशु की आज्ञाकारिता) 
1. क्या इसका यह मतलब है कि मुझे सिर्फ यीशु की आज्ञाकारिता के बारे में चिंता करनी है और मेरी अपनी नहीं? 
a. अगर यह सत्य है, तब सच में धार्मिकता एक "हल्का" फल है! क्या आसान हो सकता है - कोई और भारी सामान उठाये! 





I. अपना भाग करना  
A. पढ़े रोमियो 3:29-31. हम यह निष्कर्ष (की हम यह कानून मानते है) किस प्रकार व्यवाहरिक रूप में मान सकते है? अगर हम यह सिखाते है की कानून मानने से हम धार्मिक नहीं हो सकते है, यह कैसे संभव है? क्या यह कानून को बेमुद्दा नहीं कर देता है? 
1. वो कोई और था जिसने कानून रखने का चेलेंज लिया और उसकी जीत मेरी जीत हुई! यह कानून रखना, पुराना इतिहास है, सही?  

 A. पढ़े इफिसियों 5:1-3. क्या तुम "पवित्र व्यक्ति" होने के साथ साथ लालची, दुराचारी, एवं लम्पट हो सकते हो? 
1. अगर तुम कहते हो, "नहीं" तो क्या हमें पवित्र बनने के लिए अपना लालचपन, दुराचार एवं अपवित्रता छोड़नी पड़ेगी?     

a. अगर तुम कहते हो, "हाँ," तब दोबारा पढ़ो रोमियो 3:21-24 तथा रोमियो 3:28!    

A. दुबारा फिसिओं 5:1 देखो. 
परमेश्वर हमसे क्या कह रहा है जब वो कहता है हम उसका अनुकरण करें? (रोमियो 3 हमें सिखाता है कि हम पापी है, और हमारी धार्मिकता का रास्ता सिर्फ यीशु  के ऊपर विश्वास करने से आता है. उसका पवित्र जीवन एवं हमारे लिए उसका बलिदान हमें पवित्र बनाता है. लेकिन, पवित्र व्यक्तिओं को इस तरह का व्यावहर करना होगा कि वो पवित्र है. इसलिए हमें कहा है कि पवित्र परमेश्वर का अनुकरण  करो)  
1. क्या अनुकरण करना वास्तविक के सामान है? (नहीं)  
a तो, इसका हमारे लिए क्या मतलब है? परमेश्वर मक्खन है और हम मार्जीरिन है? परमेश्वर काठ है और हम छपी हुई प्लास्टिक? यह बहुत उत्साहवर्धक नहीं लगता है, चलो हम लोग फिसियो 5 का और गूढ़ अध्यन करे.    
A. पढ़े फिसियो 5:3-7. मेरी धार्मिकता को विश्वास से क्या हुआ? एक ही आदमी (पौलुस)पवित्र आत्मा से प्रेरित होकर ये पंक्तिया तथा रोमियो 3 तथा 5 कैसे लिख सकता है?यह "अनुकरण" करने के निर्देश काफी गंभीर है.इसमें रहने में हमारा मान सम्मान है. क्योकि यीशु ने हमें पवित्र बनाया है, इसलिए हमे इस तरह कार्य करना होगा. इसीलिए दस नियम पुराने और बेकार नहीं है. ये हमारे "अनुकरण" करने के बिलकुल हृदय में है)

1. क्या हमे कुछ मसीह लोग इस बात का झांसा दे रहें है कि हमारे कार्यकलाप (एवं नियम) का कोई मतलब नहीं है? (पौलुस ने हमे  पद 6 में इस बिंदु के लिए चेतावनी दी है)  


 A. तुम्हे रोमियो ३ तथा एफिसियो ५:३-७ से क्या सीखना है इस बात का कैसे निष्कर्ष निकालोगे? (हम धार्मिकता, नियमों का पालन करके नहीं पा सकते हैं. यीशु ने वो हमारे लिए कर दिया. लेकिन, हम  अपनी दुष्टता से अपना मोक्ष खो सकते है.)
1.  क्या हमारा चुपचाप यह कहना कि हमारे कार्यो ने हमे मोक्ष दिलाया? यह उसी प्रकार हुआ जैसे मालिक अपने यहाँ  काम करने वाले को कहे तुम्हरी पगार एक मुफ्त उपहार है जब तक तुम नौकरी पर हो. लेकिन, अगर तुम काम नहीं करोगे तो तुम नौकरी से बाहर हो जाओगे. तुम यह निष्कर्ष निकाल सकते हो कि काम करना जरूरी है.( फिसियो 5: 5 दोबारा देखे. पौलुस उन लोगों को जो विपदा के कार्यो में लगे है मूर्तिपूजक कहता है. इसका मतलब वे लोग यीशु के अलावा किसी और वस्तु पर विश्वास करते है. हमारे कार्य करने का तरीका हमारे विचारों की प्रक्रिया को दर्शाता है, कार्य हमारे दिमाग के फैसले को दर्शाता है.वह दर्शाता है कि हमे यीशु के ऊपर विश्वास है कि नहीं.मै उनके बारे में सोचता हूँ कि वो गाड़ी में लगे पेट्रोल के मीटर की तरह हैं, जो गाड़ी तो नहीं चलाता लेकिन यह दर्शाता है कि गाड़ी में पेट्रोल है कि नहीं.)      
I. मामूली फल  

A. पढ़े इफिसियो 5:8-10. अब हम मामूली फल की तरफ आते हैं. यदि कोई तुमसे कहता है "हलके" हो जाओ, तुम क्या करोगे, कूदोगे? चाँद की ओर चलोगे? अपना नाम बदल कर एडिसन कर लोगे? 

1. क्या पौलुस ने "प्रकाश के बच्चे की तरह रहना" से उसका क्या मतलब है बताया? (हा. उसने कहा जो प्रकाश में रहते है  वे "अच्छाई,धार्मिकता एवं सच्चाई" में है) 
a. क्या यह धार्मिकता है? अथवा, यह अपने आप है जब हम विश्वास से धर्मी हो जाते है? ( क्योंकि पौलुस हमे फिसियो 5:8 में कहता है कि "प्रकाश के बच्चों की तरह रहो" इसका मतलब है कि हमारे पास एक विकल्प है. हमे सही जीवन जीने की इच्छा करनी होगी)  
1.हम वो चुनाव कैसे करे?इस व्यावहारिक विषयवस्तु को कैसे करे.
(फिसियो 5:10 पर दोबारा ध्यान दे: "यह पता करे कि परमेश्वर को क्या प्रसन्न करता है." यह एक हिदायत है कि हम अपनी बाइबिल का अध्यन करे, और यह खोजे कि परमेश्वर कैसे चाहता है  कि हम रहें, और फिर उसी प्रकार अपनी जिंदगी जिए.)                    
A. पढ़े एफिसियो 5:11-14.ध्यान दे हमारे ऊपर "हलके फल" की तरह एक आदेश है हम दुष्टता  के कार्यो की कलई खोल दे. क्या इसका मतलब है कि हम अपने समाज में हो रहें पापों का विडियो टेप बना ले? क्या हम समाचार पत्रों में पापियों को पहचानते हुए दिखे?    
1. बाइबिल का क्या मतलब है जब यह कहती है कि " यह प्रकाश है जो प्रत्येक वस्तु को प्रगट कर देता है"? हमारे रहने का सही उधारण है जिसमे हम अन्धेरेपन के रास्ते का रहस्य खोल देते है.मै यह नहीं सोचता हूँ कि हमे पाप को पाप के नाम से बुलाने में कोई शर्म होनी चाहिए, लेकिन, मै यह नहीं सोचता हूँ कि यहाँ बाइबिल इस बारे में कोई बात कर रही है.)

1. फिसियो 5:14 किस सन्दर्भ में कहता है कि यीशु अपनी आभा बिखेरेगा? (हमारे ऊपर! यह उस विचार को बल देता है कि हमारा "प्रकाश" हमारे अच्छे कार्य के बारे में है- दूसरों के बुरे कार्यो की तरफ ऊँगली उठाने के बारे में नहीं)    
1. दुनिया की उन मसीह लोगों के बारे में क्या प्रतिक्रिया है जो हलके फल नहीं है? (दुनिया उन लोगों का (और मसीहत)का उपहास करती है.हम लोगों केवल परमेश्वर की कृपा से बचे है, लेकिन हम लोगों का युद्ध प्रकाश एवं अंधकार से है. हम लोग कैसे रहते है यह हमारी प्रकाश की ओर निष्ठा ही नहीं दिखाती वरन प्रकाश को अंधकार के ऊपर विजय पाने में सहायता भी करती है .)       
I. परमेश्वर को जाने 



 A. हमने यह खोजा और पाया कि हमारे सही कार्य, "हमारा प्रकाश" परमेश्वर को  अनुकरण करने की कोशिश है और भले और बुरे के बीच संघर्ष है. ऐसा लगता है कि हमने एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न छोड़ दिया है, कि हमे यह सब करने की प्रेरणा कहाँ से मिलती है? क्या यह संघर्ष है? क्या यही हमारी  परमेश्वर के साथ अनुपालन की अभिलाषा है? 
A. पढ़े 1 युहन्ना 2:1-3. सही रहने की मंशा के बारे में बाइबिल क्या सलाह देती है? (परमेश्वर को जाने.ऐसे की एक ओर, किसी का अनुकरण करना बहुत ही कठीन है अगर हम उसको जानते ना हो.)    

1.परमेश्वर को जानने के लिए वो कौन सी पहली जरूरी चीज है जो बाइबिल सुझाती है? ( यीशु हमारे पापों के लिए मरा, और इस समय स्वर्ग में हमारा समर्थन कर रहा है.) 
A. पढ़े 1 युहन्ना 2:4-6. हम परमेश्वर को जानते है, यह हमे कैसे प्रेरित करता है कि हम प्रकाश में चले और सही कार्य करे?
परमेश्वर का हम लोगों के लिए प्रेम, ने उसे हमारे लिए जीने और मरने के लिए प्रेरित किया. यह मुझे आनंद देता है! मेरे ऊपर से मृत्यु दंड हट गया! यह जानता हूँ कि यीशु कानून की जरूरत की पूर्ति के लिए मरा,यह जानता हूँ कि मेरे जीवन का प्रकाश पाप के अंधकार को उजागर करने में सहायक होगा,यह सब चीजे मुझे परमेश्वर की आज्ञा मानने के लिए प्रेरित करती हैं.परमेश्वर का प्रेम मेरे अन्दर पूरा हुआ (पद 5)यह उस प्रक्रिया को चालू करती है.)      
A. दोस्त, अगर तुम निर्णय  करोगे, तुम कृपा से बच जाओगे. अगर तुमने यह निर्णय ले लिया है, तो तुम्हरा  दायित्व  है कि उसकी तरह कार्य करो. क्या तुम चाहोगे कि परमेश्वर का प्रेम तुम्हरे अंदर पूरा हो? अगर ऐसा है, परमेश्वर के बारे में जानो जिससे तुम उसको जान सको. इस अद्भुत क्रिया  में,  तुम अपना स्थान "हलके फल" कि कतार में ले लोगे, जो प्रकाश एवं धार्मिकता में चलते है.
l. अगले हफ्ते : आत्मा का फल सच्चाई है.


Introduction: Each week we have been going through the list of Spirit fruits found in Galatians 5:22. Last week we came to the end of the list in Galatians, so you might be wondering where we found yet another Spirit fruit? We found it on the “light tree!”  Ephesians 5:9 says “for the fruit of the light consists in all goodness, righteousness and truth.” In the grocery store, the fad for some time now has been “light” food. This is the food that is supposed to be more healthy for us. Let’s jump into our study of the Bible once again to find out what it means to have a “light” spiritual fruit, the fruit called righteousness!
 I.               Finding righteousness
A.               Read Romans 3:21-24. How do we become righteous? (It comes from God, it is free, and it requires faith in Jesus.)
A.               Read Romans 3:25-28. Can we become righteous by obeying the Ten Commandments? (No. If we could keep the law we would have something to boast about.  But, righteousness comes from faith - and we cannot boast in the deeds of another (Jesus). This righteousness we are told (twice) is “apart from observing the law.”)
A.               Read Romans 5:17-19. Whose act of obedience is the Bible speaking about? (Jesus’ act of obedience.)

1.               Does this suggest that I need to worry only about Jesus’ obedience and not my own?
a.               If that is true, then righteousness truly is a “light” fruit!  What could be easier - let someone else do the heavy lifting!
 I.               Acting the Part
A.               Read Romans 3:29-31. How does this conclusion (that “we uphold the law”) logically follow? If we teach that we cannot become righteous by keeping the law, how does that uphold it?  Doesn’t that make the law irrelevant?



1.               It was someone else who took on the challenge of keeping the law and that victory applies to me!  This keeping the law stuff is ancient history, right?
A.               Read Ephesians 5:1-3. Can you be a “holy person” and be greedy, sexually immoral, and impure?

1.               If you say, “no,” then must we get rid of our greed, sexual immorality and impurity to become holy?
a.               If you say, “yes,” then re-read Romans 3:21-24 and Romans 3:28!

A.               Look again at Ephesians 5:1. What is God telling us when He says to “imitate” Him? (Romans 3 teaches us that we are evil, and our only path to righteousness comes from faith in Jesus. His holy life and death on our behalf, make us holy. However, a holy people are supposed to act like they are holy. Therefore we are called to “imitate” our Holy God.)
1.               Is an imitation the real thing? (No.)
a.               So, what does that mean for us? God is the butter and we are the margarine? God is the wood and we are the printed plastic? This does not sound very encouraging, so let’s look more deeply into Ephesians 5.
A.               Read Ephesians 5:3-7. What has happened to my righteousness by faith?  How can the same man (Paul) be inspired by the Holy Spirit to write these verses and Romans 3 & 5? (This “imitation” instruction is serious. We have a reputation to live up to. Since Jesus made us holy, we need to act like it. That is why the Ten Commandments are not some ancient, irrelevant text. They are at the heart of our “imitation.”)
1.               Are some Christians deceiving us about the fact that our actions (and the law) do not matter? (Paul warns us in verse 6 about deception on this very point.)
A.               How would you sum up the lesson to be learned from Romans 3 and Ephesians 5:3-7? (We cannot earn righteousness by obeying the law. Jesus did that for us. But, we can lose our salvation by our evil works.)

1.               Isn’t this just the “backdoor” way of saying that our works earn our salvation? Sort of like your employer saying “Your salary is a free gift as long as you are employed. But, if you don’t work, then you are fired.” You might reasonably conclude working is important. (Look again at Ephesians 5:5. Paul calls the people who are involved in these evil works “idolaters.”  This means they rely on something other than Jesus. Our works are an indication of our thought process. Works reflect the decisions of our mind. They reveal whether we have faith in Jesus or not. I think of them like the gas gauge in your car - the gauge does not power the car, but it reveals how much power is available.)

I.               Light Fruit
A.               Read Ephesians 5:8-10. Now we come to the light fruit. If someone told you to be “light,” what would you do, jump? Move to the moon? Change your name to Edison?
1.               Does Paul explain what he means by “living as children of light?” (Yes. He tells us that what comes out of light living is “goodness, righteousness and truth.”)
a.               Is this a righteousness?  Or, is this automatic when we become righteous by faith? (Since Paul tells us in Ephesians 5:8 to “live as children of light,” this tells us that we have a choice. We need to choose to live right lives.)
1.               How should we go about making that choice? Tell me how to do this, as a practical matter. (Notice Ephesians 5:10 again: “find out what pleases God.”  This is an instruction to read our Bibles, find out how God wants us to live, and then live life that way.)
  A.               Read Ephesians 5:11-14. Notice that we have an assignment, as “light fruit,” to “expose” the deeds of darkness.  Does that mean we should videotape the sin in our community? Should we be in the newspapers identifying sinners?
1.               What does the Bible mean when it says “it is light that makes everything visible?” (The primary way in which we “expose” the darkness is to be an example of right-living. I don’t think we should be shy about calling sin by its right name, but I don’t think this is what the Bible is talking about here.)

 1.               In what direction does Ephesians 5:14 say that Jesus will shine His light? (On us!  This strengthens the idea that our “light” is about our good deeds - not directly pointing out the bad deeds of others.)
1.               What is the world’s reaction to Christians who are not “light fruit?” (The world holds them (and Christianity) up to ridicule. We are saved by grace alone, but we are in a battle between light and darkness. How we live not only reveals our loyalty to the light side, but it helps the light side to win the battle against darkness.)

I.               Knowing God
A.               We have discovered that our right works, our “light,” is an attempt to imitate God and is important to the conflict between good and evil. That seems to omit a very important question, what motivates us to do this?  Is it the battle? Is it a desire for conformity with our God?
A.               Read 1 John 2:1-3. What does the Bible suggest as a motive for right-living? (Knowing God. As an aside, it is pretty hard to imitate someone if you do not know them.)
 1.               What is the first thing that the Bible suggests is important about knowing God? (Jesus died for our sins, and is currently defending us in heaven.)
A.               Read 1 John 2:4-6. How does knowing God motivate you to do what is right, to walk in the light? 
(God’s love for us motivated Him to live and die on our behalf. That gives me joy! My death sentence has been lifted! Knowing that Jesus died to satisfy the requirements of the law, knowing that the light of my life helps to expose the darkness of sin, these things motivate me to obey God.  This begins the process in which (verse 5) God’s love is made complete in me.)
A.               Friend, if you choose, you can be saved by grace alone.  If you have made that choice, then you have an obligation to act like it. Would you like God’s love to be made complete in you? If so, learn about God so that you can know Him. In that wonderful process, you will take your place in the ranks of the “light fruit,” those who walk in the light, those who walk in righteousness.
 I.                    Next week: The Fruit of the Spirit is Truth.

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