Lesson 10 The Fruit of the Spirit is Self-Control /आत्मा का फल आत्मसंयम है
(1 Corinthians ९-10,Colossians 3,Romans 5/1 कुरिन्थियों 9-10,कुलुस्सियों,रोमियों 5)
Copr. 2010, Bruce N. Cameron, J.D. All scripture references are to the New International Version (NIV), copr. 1973, 1978, 1984 International Bible Society, unless otherwise noted. Quotations from the NIV are used by permission of Zondervan Bible Publishers. you can find it by clicking on this link: http://www.GoBible.org. Pray for the guidance of the Holy Spirit as you study.
परिचय: एक पल के लिए सोचे गलातिओं 5:22 " लेकिन आत्मा का फल है ....... आत्म संयम"| क्या यह तर्कपूर्ण विरोधाभास नहीं है? पवित्र आत्मा "आत्मा" है, परमेश्वर की आत्मा | यदि परमेश्वर मुझे नियंत्रण दे रहा है, तो यह "आत्म संयम" कैसे होगा? क्या आत्मा मुझे मजबूत मास पेशियाँ देता है और उसके बाद मुझे अपने ऊपर नियंत्रण करने के लिए भेज देता है? सही में, यदि लोग यह बहस करते हैं कि उनका काम ज्यादा जरूरी है वो जरूर कुछ किसी और सोच में है, क्या, मै नहीं जानता. हमेशा की तरह, हम बाइबिल अध्ययन में लग जाये और यह देखने की कोशिश करे कि स्वयं नियंत्रण क्या है.
प्रशिक्षण
A. पढ़े 1. कुरंथियों 9:24-25. वो कौन सा मुकुट है "जो हमेशा रहेगा" ( पौलस यहाँ स्वर्ग जाने के बारे में बता रहा है. वो अन्नंत जीवन के बारे में बता रहा है.
1. क्या स्वर्ग में जाना बोस्टन मेराथन दौड़ जैसा है-एक ही विजयी है? अथवा,एक विजयी हर वर्ग में? ( नहीं, अन्यथा, मूसा ने हमारे पैदा होने से पहले ही अंतिम रेखा छू ली होती.)
1. यदि पौलुस का कथन परिपूर्ण नहीं है, उसका मतलब क्या है? (कम से कम, पौलुस हमें यह सिखला रहा है कि हमें स्वर्ग के रास्ते का प्रशिक्षण गंभीरता से लेना चाहिए)
पौलुस हमें दो और कथन दे रहा है:
हम उद्देश्य हीनो की तरह दौड़ रहें है जिसको यह पता नहीं की अंतिम रेखा कहाँ है,तथा, मुक्केबाजी की प्रतियोगिता जिसमे तुम यह नहीं निश्चित कर पा रहें हो कि तुम्हे दूसरे को मारना है. इन दोनों स्थितियों में बल का क्या काम?( नहीं. तुम तेज़ धावक हो सकते हो और बलशाली मुक्केबाज़, तब भी यह समस्या हो सकती है.)
1.इस प्रकार की समस्यों का क्या हल हो सकता है? पौलुस किस प्रकार के प्रशिक्षण की बात कर रहा है? ( ख़राब मौसम के कारण मै साइकिल से काम पर नहीं जा पाया, तो, मैंने वीडियो गेम्स खेलना शुरू कर दिया . इनमे से एक में यह जरुरी है कि एक नियत स्थान पर नियत समय पर पैर रखे. मुझे यह सोचने में थोड़ा समय लगा कि मुझे क्या करना होगा. मेरे ख्याल से पौलुस का यह कहना है कि हमें यह समझना होगा कि हमारा लक्ष्य क्या है. और यह समझना होगा कि कौन सी चाल चलनी होगी.|)
1.पौलुस कह रहा कि जब हम पुरस्कार से वंचित हो जाते हैं.पुरस्कार पाने में क्या रूकावट है? (पौलुस शरीर की थकान के बारे में कहता है. यानि कि लक्ष्य के अनुसार हमें अपना शरीर चुस्त रखना है.)
A. अभी तक हमने देखा कि पौलुस ने यह सिखाया कि हमारा एक लक्ष्य होना चाहिए, और उस लक्ष्य के लिए हमारा शरीर एक लय होना चाहिए. वो लक्ष्य क्या है? ( मै सोचता हूँ कि हमें अगले अध्याय में जाना होगा. पौलुस के ओरिजिनल पत्रों में कोई विभाजन नहीं था.)
A. पढ़े 1 कुरंथियो 10:1-4 क्या इन व्यक्तियों के पास कोई लक्ष्य था? (हाँ. वचनों वाली भूमि)
1. उनका बप्तिस्मा हुआ, स्वर्गीय भोजन लिया और पिया,और यीशु से पिया. क्या यह सब बातें स्वयम- नियंत्रण के लिए ठीक लगती है? (हाँ)
A. पढ़े 1. कुरंथियो 10:5. पौलुस हमें बताता है हमें लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कठिन प्रशिक्षण करना होगा, और जब अभी हम उन लोगों को देखते है "जो इधर उधर फिरते हैं" उन लोगों ने भी यह सही चीज करी. पौलुस यहाँ क्या कह रहा है क्या तुम उसका कोई अभिप्राय निकाल सकते हो?
A. हम देखते है कि क्या पौलुस हमारी मदद कर सकता है.पढ़े 1 कुरंथियो 10:6 क्या परेशानी थी? (उनका हृदय बुरी वस्तुओ पर था. उनके पास कोई लक्ष्य नहीं था)
1. उस धावक का क्या है जो बिना किसी लक्ष्य के दौड़ रहा है? मुक्केबाज़ हवा में मुक्के चला रहा है?(उनका कोई लक्ष्य नहीं है. और, अगर उनका कोई लक्ष्य था,वो कोई मतलब का नहीं था. पौलुस की शिक्षा लक्ष्य निर्धारण के बारे में है: कुछ हो और वे सही हो)
I. सही
1. क्या यह वो लक्ष्य है जिसमे हम "कड़ा परिश्रम" करे?( यह हमारा आत्म सयम है जो परमेश्वर के ऊपर विश्वास करे और उसको पहला स्थान दे, बनस्पत खुद अपने ऊपर विश्वास करे और अपने आप को पहला स्थान दे. हम को अपने आप से कहना है "रास्ते से दूर हो जाओ!")
1. क्या यह लक्ष्य है जिसके ऊपर हम कड़ी मेहनत करे? (इस स्थान पर मै साफ़ साफ़ लक्ष्य और training देख सकता हूँ . रीजेंट विश्व विद्यालय के एक वक्ता ने कहा जब हम किसी के साथ कुछ समय बिताते हैं वो प्रेम की तरफ पहला कदम है.यदि तुम किसी से साथ बहुत समय बिता रहें हो जो तुम्हारा पति अथवा पत्नी नहीं है. सावधान!यदि तुम गन्दी फोटो देख रहें हो, तुम अपने आप को गलत लक्ष्य की तरफ ले जा रहें हो. Bili ग्राहम का एक नियम था वो कमरे में अपनी पत्नी के अलावा किसी और महिला के साथ अकेला नहीं होता था. यह उसके लक्ष्यपूर्ण नियम थे.)
1. क्या यह लक्ष्य है जिसके ऊपर हम कड़ी मेहनत करे? (इस स्थान पर मै साफ़ साफ़ लक्ष्य और प्रशिक्षण देख सकता हूँ . रीजेंट विश्व विद्यालय के एक वक्ता ने कहा जब हम किसी के साथ कुछ समय बिताते हैं वो प्रेम की तरफ पहला कदम है.यदि तुम किसी के साथ बहुत समय बिता रहें हो जो तुम्हारा पति अथवा पत्नी नहीं है. सावधान!यदि तुम गन्दी फोटो देख रहें हो, तुम अपने आप को गलत लक्ष्य की तरफ ले जा रहें हो. बिली ग्राहम का एक नियम था वो कमरे में अपनी पत्नी के अलावा किसी और महिला के साथ अकेला नहीं होता था. यह उसके लक्ष्यपूर्ण नियम थे.)
A. पढ़े 1 कुरंथियो 10:9 | "परमेश्वर को परखो" इसका क्या मतलब है?
1. पढ़े गिनतियो 21:4-6| यह वो घटना है जिसके बारे में पौलुस बता रहा है | इस पाप का तुम कैसे वर्णन करोगे? ( वो परमेश्वर के ऊपर विश्वास नहीं कर रहें थे | वो परमेश्वर कि महिमा नहीं कर रहें थे | उनका इस विषय में नकारात्मक पहलु था |)
a. यह प्रशिक्षण का लक्ष्य कैसे हो सकता है ? ( परमेश्वर कि महिमा करो! नकारात्मक चीजो पर ध्यान मत दो |)
1. क्या इस लक्ष्य पर हम "कड़ा प्रशिक्षण" कर सकते है? (क्या यह अवश्यक नहीं है कि स्वयं को जांचे: परमेश्वर की योजना स्वीकार करे,उसकी महिमा करें और उसके ऊपर विश्वास करे?)
A.पढ़ें 1. कुरिन्थियों 10:10. तुम इस प्रशिक्षण के लक्ष्य को कैसे बताओगे ? ( शिकायत मत करो)
1 . क्या इस लक्ष्य पर हम "कठिन प्रशिक्षण" कर सकते है? ( शिकायत करने से रोकने के लिए आत्मसयम की जरूरत है|)
A . पढ़े 1 कुरंथियो 10:11 . क्या तुम इन चेतावनियों का एक तरीका देख सकते हो? (शारीरिक पापों के सिवाए (जो अविश्वसिओं की आराधना की तरह है ) यह सब हमारे परमेश्वर के साथ संबंधो के विषय में है | क्या हम परमेश्वर के ऊपर विश्वास करते है और उसे पहला स्थान देते है, क्या हम उसकी महिमा करते है, क्या हम बडबडाने के बजाये उसकी प्रशंसा करते है? यह हमारे लक्ष्य है| हमें आवश्यकता है कि इन लक्ष्यों पर कठिन परिश्रम के द्वारा हम अपने शरीर को नियंत्रण में ले( ज्यादातर हमारे दिमाग को )|
I कृपा और कार्य
A . यदि तुम धार्मिकता पर विश्वास करते हो, क्या तुम इस बात से घबरा रहें हो कि हम अपने दिमाग के ऊपर नियंत्रण कर लेंगे? यदि नहीं, मै हूँ! पढ़े रोमियो 5 :1 -5 . कहाँ, हम यह पाते हैं कि हम अपने दिमाग के ऊपर नियंत्रण कर लेंगे
A. पढ़े 1. कुरंथियो 10:13. यह क्या बताता है आपके और परमेश्वर के बारे में जब आपके जीवन में लालच और सयम की बात आती है?
परमेश्वर लालच के ऊपर एक रोक लगा देता है जिससे सफल रूकावट संभव है. परमेश्वर लालच से निकलने का रास्ता दिखता है.मेरा कार्य अपनी क्षमता के अनुसार लालच रोकना है. उस द्वार की ओर देखना है जो परमेश्वर ने हमें लालच से निकलने के लिए दिखाया है.) 1.यह हमें आत्म सयम का क्या स्वभाव है उसके बारे में क्या सिखाता है?( "आत्म सयम" में "मै" है. परमेश्वर के अनुग्रह से हम बचे है, हमारी परमेश्वर के साथ चाल दिखाता है.इसका यह मतलब नहीं है कि हम चुपचाप बैठ जाये और आराम करे, बल्कि परमेश्वर के साथ मिलकर ऐसा जीवन जिए जो उसके लक्ष्य की तरफ इशारा करते है. अगर हम असफल हो जाते हैं इसका मतलब हम पुरस्कार से वंचित हो गए.
A. पढ़े कुलुस्सियों 3:1-3. यह हमें लालच से बचने के क्या सुझाव देता है? हमारे लक्ष्य क्या हैं? (हम अपना हृदय परमेश्वर क्या चाहता है उस तरफ लगाये. यह देखे परमेश्वर के दिमाग में क्या है.)
A. पढ़े 1 कुरंथियो 10:14.
याद रखे हमारा पहला लक्ष्य (1 कुरंथियो 10:7) परमेश्वर को पहले रखे. यह लक्ष्य पाने के लिए पौलुस और क्या सलाह देता है? ( मूर्तिपूजा से दूर हो)
A. पढ़े 1 कुरंथियो 10:15-17.मूर्तिपूजा से दूर भागने में "रोटी" को क्या करना है? क्या हमें भागने के लिए कार्बोहीडरत की जरूरत पड़ती है? (पौलुस विश्वास से मोक्ष प्राप्ति के बारे में बताता है,और यह कहता है कि " मूर्तिपूजा,यीशु का मेरे लिए बलिदान,को दूर करती है"
A. पढ़े 1 कुरंथियो 10:18-22
कृपा और कार्य इन पंक्तिओं में कैसे बताई गयी है. पौलुस कहता है कि कृपा और कार्य के बीच बहुत निकट का सम्बन्ध है. यदि तुम्हारा कार्य शैतान को समर्पित है, तुम कैसे कह सकते हो कि तुम्हे परमेश्वर की कृपा है? हमारा कार्य हमारी आदतों के अनुसार होना चाहिए, जैसे हम मेज पर बैठ कर भोजन करते हैं . अगर हम परमेश्वर की मेज पर भोजन करे (प्रभु भोज के सन्दर्भ में, अर्थात कृपा) हमारे सामने लक्ष्य और परिश्रम होना चाहिए (स्वयम नियंत्रण)जो कि मेज पर खाने के जैसा हो).
A. दोस्तों, पौलुस मोक्ष की प्राप्ति सिर्फ विश्वास के द्वारा,का सबसे बड़ा वकील है. हम इन पुस्तकों में देखते हैं कि मसीह जीवन सब के साथ का मिलाजुला जीवन है जिसमे पवित्र लक्ष्य निर्धारित करने होंगे और उन लक्षों कि प्राप्ति के लिए पूर्ण रूप से कोशिश करनी होगी. परमेश्वर हमारे पापी जीवन से दूर करेगा, लेकिन हम लोग एक ऐसे जीवन के लिए है जहाँ स्वयं नियंत्रण है. क्या तुम अपने आप को अपने आत्मिक शिक्षक से दूर करोगे और एक सही जीवन जीने कि प्रेरणा लोगे?
I. अगले हफ्ते:- आत्मा का फल - धार्मिकता
Introduction: For just a moment contemplate Galatians 5:22: “But the fruit of the Spirit is ... self-control.” Isn’t this a logical contradiction? The “Spirit” is the Holy Spirit, God’s Spirit. If God is giving me control, how can it be called “SELF-control?” Does the Spirit give me big muscles and then send me off to control myself? Clearly, the people who argue that my works are important, are on to something here. What, I’m not sure. As always, let’s dive into our study of the Bible and try to figure out what this self-control stuff all about!
I. Training
A. Read 1 Corinthians 9:24-25. What is the crown “that will last forever?” (Paul is taking about going to Heaven. He is talking about eternal life.)
1. Is going to Heaven really like the Boston Marathon race - you have one winner? Or, one winner in each class?(No. Otherwise, Moses crossed the finish line before we were born!)1. If Paul’s analogy is not perfect, what is his point? (At a minimum, Paul is teaching us that we need to take seriously our training on the road to heaven.)
A. Read 1 Corinthians 9:26-27.
Paul gives us two more analogies:
running like you are clueless about the location of the finish line; and, a boxing contest in which you don’t realize you are supposed to hit the other guy. Does strength have anything to do with either of these problems? (No. You can be the fastest runner and the hardest hitter and still have these problems.)
1. What would be the fix for these kinds of problems? What kind of “training” is Paul suggesting? (Bad weather has discouraged me from riding my bicycle to work, so I’ve started exercising using video games. One of them involves putting your foot at the precise moment on the precise point. It took me a while to figure out what I was supposed to be doing. I think Paul’s point is that we have to understand the goal of the contest. We have to understand what moves are needed.)
1. Paul talks about being “disqualified” from the prize. What is the barrier to getting the prize? (Paul writes about beating his body. It must be that we need to get our body in line with the goal.)
1. What happens if we do not get our body in line? (Since the prize is heaven, Paul is saying our salvation is at stake!)
A. So far we have seen that Paul teaches us that we need a goal and we need to get our body in line with that goal. What is that goal? (I think we need to press on to the next chapter. A chapter division did not exist in Paul’s original letter.)
A. Read 1 Corinthians 10:1-4. Did these people have a goal? (Yes. The promised land.)
1. They were baptized, ate spiritual food and drink, and “drank” from Christ. Do these things sound like reasonable actions for self-control? (Yes.)
A. Read 1 Corinthians 10:5. Paul tells to go into strict training to get our body in line with the goal, and now we see people whose bodies are “scattered over the desert” even though they did these proper things. Can you make any sense out of what Paul is saying?
A. Let’s see if Paul will help us out. Read 1 Corinthians 10:6. What was the problem? (Their hearts were set on evil things. They had a goal problem.)
1. What was the goal of the runner running aimlessly? The boxer punching in the air?(They did not have any goals. Or, if they had goals, their goals did not make any sense. Paul’s training is about setting goals: have some and make sure they are righteous.)
I. Right
A. Let’s further explore the issue of our training goals. Read 1 Corinthians 10:7. How would you describe this training goal? (Worship only God.)
1. Is this a goal on which we can engage in “strict training?” (It takes self-control to trust God and give Him first place, rather than trusting myself and giving myself first place. We need to say to self, “Get out of the way!”)
A. Read 1 Corinthians 10:8. How would you describe this goal? (Sexual purity.)
1. Is this a goal on which we can
engage in strict training? (This is an area in which I can clearly see goals and training. A recent speaker at Regent University said the first step towards love is to spend time with someone. If you are spending lots of time with someone who is not your spouse, beware! If you are spending time with porn, you are training for the wrong goal. Billy Graham has a rule that he is never alone in a room with a woman who is not his wife. He had goal-oriented rules.)
A. Read 1 Corinthians 10:9. What does it mean to “test the Lord?”
1. Read Numbers 21:4-6. This is the event to which Paul is referring. How would you describe this sin? (They were not trusting God. They were not giving God credit. They were looking at the negative side of things.)
a. How could this be a training goal? (Give God credit! Do not look at the negative side of things.)
1. Is this a goal on which we can engage in “strict training?” (Isn’t this the essence of keeping self in check: to accept God’s plan, to give Him credit and to trust Him?)
A. Read 1 Corinthians 10:10. How would you describe this as a training goal? (Don’t complain.)
1. Is this a goal on which we can engage in “strict training?” (It takes self-control to stop complaining.)
A. Read 1 Corinthians 10:11. Can you see a pattern here in these warnings? (Except for the sexual immorality issue (which also had a pagan worship aspect) these all seem to have to do with our relationship to God. Do we trust God and give Him first place, do we give Him credit, do we praise Him rather than grumbling? These are our goals. We need to beat our body (more likely our brain) into submission on these topics by strict training.)
I. Grace and Works
A. If you believe in righteousness by faith, are you getting a little nervous about the idea that we can beat our brains into submission? If you are not, I am! Read Romans 5:1-5. Where, in this sequence, do we find beating our brains into submission? (We are justified by faith in Jesus, but the life of the Christian is a progression towards righteousness.)
A. Read 1 Corinthians 10:13. What does this suggest about your role and God’s role when it comes to temptation and self-control in your life? God places a cap on the temptation so that successful resistance is possible. God provides a way out of the temptation. My role is to resist temptation to the extent of my ability. To look for the door God provides as a way out of the temptation.)
1. What does this teach us about the nature of self-control? (There is a SELF in “self-control.” Being saved by grace is just the beginning of the walk with God. We are not entitled to lay down and rest thereafter, instead we are involved in a team effort with God to live a life reflecting His goals. Failing to engage in that effort may mean we lose the prize (1 Corinthians 9:27).)
A. Read Colossians 3:1-3. What suggestion does this give us for resisting temptation? What goal are we given? (To set our hearts on the things that God desires. To explore what God has in mind.)
A. Read 1 Corinthians 10:14. Remember that our first goal (1 Corinthians 10:7) was to put God first. What additional advice does Paul give for achieving that goal? (Run away from idolatry!)
A. Read 1 Corinthians 10:15-17. What does the “loaf” have to do with running away from idolatry? Do we need carbohydrates to run? (Paul points to the symbols of salvation by faith, and in essence says “Idolatry gets in the way of relying on Jesus’ sacrifice on your behalf!”)
A. Read 1 Corinthians 10:18-22. How are grace and works described in these verses? (Paul is arguing the very close connection between grace and works. If your works are “sacrifices” to Satan, how can you claim to be accepting grace? Our works should line up, to the best of our abilities, with the “table” at which we eat. If we eat at the Lord’s table (an analogy to Communion and thus grace), we need to have goals and training (self control) that is consistent with eating at that table.)
A. Friend, Paul is the strongest advocate in the Bible of salvation by faith alone, but we can see in these texts that the Christian life is a team effort in which righteous goals need to be set and maximum effort applied to meet those goals. God will not let our sin problems get out of hand, but we are called to a life of self-control. Will you commit to getting off your spiritual coach and start training for right living?
I. Next week: The Fruit of the Spirit is Righteousness.
No comments:
Post a Comment