Thursday, February 25, 2010

GoBible.org - Lesson 9 The Fruit of the Spirit is Meekness / आत्मा का फल नम्रता है (Matthew 11, Ephesians 4, 1 Peter 3) (मत्ती 11, इफिसियो 4, 1 पतरस 3)


Lesson 9 The Fruit of the Spirit is Meekness आत्मा का फल नम्रता है
(Matthew 11, Ephesians 4, 1 Peter 3) (मत्ती 11, इफिसियो 4, 1 पतरस 3)
Copr. 2010, Bruce N. Cameron, J.D. All scripture references are to the New International Version (NIV), copr. 1973, 1978, 1984 International Bible Society, unless otherwise noted. Quotations from the NIV are used by permission of Zondervan Bible Publishers. Suggested answers are found within parentheses. If you normally receive this lesson by e-mail, but it is lost one week, you can find it by clicking on this link: http://www.GoBible.org. Pray for the guidance of the Holy Spirit as you study.
परिचय : रसभरी  मेरा मनपसंद फल है | हालाँकि मै सभी फल पसंद करता हूँ, मुझे इस बारे में बहुत ही कम याद है कि कभी कोई सुंदर फल मैंने कड़वे स्वाद के कारण पसंद न किया हो | यदि मुझे आत्मा के फलों को एक क्रम में रखना पड़े, नम्रता मेरा रसभरी नहीं हो सकता | मत्ती 5:5 में यीशु के कथन को विचार में ले कि  नम्र ही पृथ्वी पर राज करेंगे | यह कैसे सही हो सकता है? मै  यह सोचता था कि जो आक्रामक और कड़ी मेहनत करता है वो ही सफल है|  मैंने कभी स्वयं मदद के उद्देश से पढ़ी  जाने वाली किसी भी पुस्तक में यह सुझाव नहीं पड़ा कि नम्रता सफलता का मार्ग है | नम्र होने के विचार में एक समस्या और आती है  कि ज्यादातर अनुवादों (NIV सहित) में ग्रीक शब्द का अनुवाद "भलाई," किया गया है नम्रता की अपेक्षाकृत | जब हम दुनिया के बीच होते हैं तब नम्र शब्द का क्या मतलब है? जब हम मसीह लोगों के बीच में होते हैं तब नम्र शब्द का क्या मतलब है? चलो बाइबिल के अध्य्यन में डुबकी लगा कर इस अप्रचलित फल के रहस्य  कि खोज करते हैं |
I.  एक नम्र परमेश्वर?
A पढ़े मत्ती 11:28-30. हमने यह वचन इस पढाई के दौरान बहुत बार देखा | NIV में शब्द "भलाई" दूसरी अन्य बाइबिल में "नम्र" अनुवादित किया गया है  | क्या नम्र यहाँ अच्छा  लगता है? क्या तुम यह चाहोगे कि यीशु यहाँ कोई दूसरा शब्द इस्तेमाल करता? (मैं यहाँ भलाई अथवा नम्र पसंद करता, क्योंकि यीशु मुझसे बात कर रहा है!)
एक टिप्पणीकार ने लिखा "नम्रता पूर्ण है, हमारी योजनाओं के लिए लड़ना छोड़ कर और विश्वास करें कि परमेश्वर हमारे लिए हमारी ओर से लड़ेगा
"तुम उस बयान के बारे में क्या सोचते हैं? (मेरी पहली प्रतिक्रिया थी, "ये पागलपन है!" मेरी अगली प्रतिक्रिया थी, "अगर हमारा प्लान परमेश्वर का प्लान नहीं है, मुझे यह समझ में आता है.")

a. क्या होगा अगर हम परमेश्वर के प्लान को अपना प्लान बनाने की कोशिश कर रहे हैं - क्या हमें लड़ना बंद कर देना चाहिए?
b. ध्यान  दें  कि मत्ती 11:29 हमारी आत्माओं के लिए 'आराम'. प्रदान करता है | यह क्या सुझाव देता है यीशु से विनम्रता (नम्रता) सीखने के बारे में ? (आत्मा का यह फल चैन या विश्राम की कुंजी है | अगर हम लड़ नहीं रहे हैं आराम बहुत आसान है!)
c. पाठ से पता चलता है कि 'यीशु की नम्रता हमारे जीवन को बेहतर बनाती है. कैसे? (हम यीशु का हमारे साथ कोमल होने के विचार की चर्चा करते है, लेकिन यीशु कहता है कि "मुझ से सीखो." यीशु की नम्रता के बारे में कुछ है जोकि हमारे जीवन में सुधार लाएगा | चलो आगे चलते हैं)
II. एक नम्र तुम?
a.  पढ़ें इफिसियों  4:1-3. हाल ही में, मैंने एक ब्लॉग को मेरी कलीसिया पर हमला करते हुए पढ़ा | लेखक को कलीसिया  के एक सदस्य होने का दावा किया गया, लेकिन मैंने देखा कि लेखक ने हमेशा कलीसिया का नाम लिखने में त्रुटि की | मैंने एक अनिवार्य रूप से यह कह कर कि "यदि आप कलीसिया का नाम ठीक तरह से नहीं लिख पा रहें हैं तो आप इस पर आलोचना का दावा कैसे कर सकते हैं ? "मेरा 'नम्र और विनम्र" संदेश: आप एक अज्ञानी मूर्ख हैं | ब्लॉग लेखक ने एक क्रोध की प्रतिक्रिया लिखी और उसका प्रयास पूरी तरह से समय  की बर्बादी थी |
1. जब कोई आपके धार्मिक विश्वासों या आपकी कलीसिया पर हमला करे तो इफिसिओं 4:1-3 के दृष्टिकोण से किस तरह का सुझाव है?
2. क्या होगा अगर तुम अज्ञानी मूर्ख के साथ काम कर रहे हो, और जो आपके विश्वास पर हमला कर रहा है उससे आपकी सोच ज्यादा तेज है? पूरी तरह से विनम्र?" रहने का अनुदेश इसमे किस तरह से फिट बैठता है  (यदि आप सोच रहे हैं एक बहुत चालाक हो, तो यह पूरी तरह से विनम्र व्यवहार नहीं है, ठीक?)
3. आसान  बात यह  है  कि जो लोग चिड्चिडा पन लाते है उनकी उपेक्षा कर दो| यह उस दिशा में किस तरह आ सकता है  कि " प्रेम मे एक दूसरे के साथ हो?" ( कुछ फैसले एक दूसरे को सहन करने के लिए किये जाते है, जबकि किसी की उपेक्षा कराना उसकी बेईज्ज़ती करने के सामान है, कई बार फ़िज़ूल के झगड़ो से बचने के लिए इस तरह के फैसले ही एक उपाय है | हमें यह फैसला करने की ज़रुरत है कि किससे प्यार आगे बढ़ता है |)
4. क्या इफिसियो 4:3 मुझे अपने ब्लॉग के व्यवहार के लिए एक बहाना देता है, क्योंकि हमें विनम्र, भद्र और सदस्यों के साथ प्यार से रहने के किये बुलाया गया है ? सजग रहो उनसे, दुनिया में जो लोग कलीसिया पर हमला करते है और परमेश्वर को ना मानने वाले हैं !
B. पढ़ें 1 पतरस 3:15-16. यहाँ पर किसे उत्तर दिया जा रहा है, एक कलीसिया  के सदस्य को या दुनिया को? (दुनिया!)
1. हमें किस तरह का जवाब देना चाहिए इस बारे में क्या सुझाव है? (विनम्रता के साथ (नम्रता) और सम्मान!)
2. दुनिया हमारे प्रति कैसा व्यवहार करेगी, पतरस का क्या सुझाव है? (वे दुर्भावनापूर्ण होंगे, लेकिन हमें  एक सौम्य तरीके से जवाब देना चाहिए. विचार है कि हमारे विनम्र जवाब से, उन्हें अपने दुर्भावनापूर्ण व्यवहार पर शर्म आयेगी)
C .पढ़ें 2 तीमुथियुस 2:22-26. इस पाठ में क्या हम लोग उन लोगों के साथ काम कर रहें है, जो सच्चाई जानते हैं और तर्क से काम लेते हैं? (नहीं | ये लोग सत्य को नहीं जानते और मूर्खता पूर्ण तर्क शामिल होतें हैं | ये अज्ञानी लोग जो ज्यादा बुद्धिमान नहीं हैं | वे हास्यास्पद तर्क देतें हैं.)
1. उनके साथ हमें किस तरह का व्यवहार करना चाहिए? (कोमल अनुदेश | नम्र अनुदेश!)
2. इस तरह से आप कोई भी तर्क किसे जीत सकतें है? आप उन्हें कैसे दिखा सकतें है कि कितने  मूर्ख, अज्ञानी और हास्यास्पद वे हैं? (ध्यान दें  लाइन 25, परमेश्वर उन्हें पश्चाताप अनुदान करता है | महत्वपूर्ण बात में कैसे खो रहा था इन पाठों से मेरी आँख खुल गयी! मेरा लक्ष्य यह दिखाना हो चुका है कि बुतपरस्त लगों की स्थिति कितनी विसंगत और मूर्खता पूर्ण  है | किसी भी समझदार व्यक्ति को उनके विचारों पर हंसी आनी चाहिए | पर यह  विचार कि उनको मूर्ख ठहरा कर मैं उनके दिलों को जीत सकता हूँ, कुछ इसी तरह है कि मैं अपना उद्धार स्वयं कमा सकता हूँ? )

D . याद करो कि हमने अध्यन मत्ती 11:29 से शुरू किया, जिसमें कहा गया है कि अगर हमने नम्रता और विनम्रता यीशु से सीखी तो हम विश्राम पाएंगे?याद करो पिछली बार का जब तुम अपने विश्वास को लेकर एक गरमागरम बहस में पड़ गए थे | क्या तुम्हे आराम मिला था? ( मैं उस वक़्त गुस्से में आ जाता हूँ जब कोई मेरी मसीहियत अथवा मेरा विशिस्ट विस्वास के ऊपर कोई वार करता है | लेकिन, यदि मै "तर्क" करूँ, और वो गुस्से में मेरे पास वापस आये, उस वक़्त मैं चिद्चादा जाता हूँ कि मैं सिर्फ आक्रमण देख रहा हूँ और कुछ कर नहीं पा रहा हूँ)     

III .  नम्र कि विरासत 

A . पढ़े फिलिपियो 2 :5 -7 तुम क्यों सोचते हो कि यीशु इस दुनिया में आया और अपने आप को "दीन" बना लिया? उसके पास सभी हक़ और अधिकार थे कि वो राजसी तरह से आता! (पड़े हिब्रानिया 4 : 15 -16 . यीशु इस तरह दुनिया में आया कि हम लोगों में कोई भी यह ना कह पाए कि उसको इस धरती पर हमसे कुछ ज्यादा लाभ थे |)    

B . पढ़े फिलिपियो २:८. अगर मुझे नम्र होना है तो मेरे विचार से मुझे अपने सम्मानित  होने का हक़ छोड़ना पड़ेगा | क्या यही  यीशु ने किया? ( अवश्य ही कुछ लोगों ने यीशु का सम्मान नहीं किया, लेकिन मुझे यह नहीं लगता है कि यह उसका ध्हेय था | इसके बजाये, उसका उददेश हम लोगों के जैसा लगना था- एक आम आदमी जिसके पास पैसा, रुतबा और शक्ति नहीं होती है वो उसका लाभ लेता ऐसा उसका विचार नहीं था | इब्रानियो ने इस बात पर जोर डाला कि यीशु को वोही अनुभव हुए जो हमें होते हैं |)    

1. अपने जीवन में हम यह धारणा कैसे लाये? ( जब हम विश्वास के बारे में बहस करते है और उसका बचाव करते है यह सोच कर कि  हमारा  विश्वास श्रेष्ठ है: दूसरा व्यक्ति मूर्ख, अज्ञानी एवं दुष्ट है, हम लोगों कि सोच येसु जब इस दुनिया में आया उससे बिलकुल भिन्न है) 

C. पढ़े फिलिपियो २:९-११. जब हमने यह पाठ शुरू किया था, उस वक़्त मैंने यह बताया था कि कोई स्वयम सहायता वाली पुस्तक मैं नहीं जानता हूँ जो यह विवाद करे कि हमको जीतने के लिए नम्र होना होगा. जबकि, यीशु ने मत्ती ५:५ में बताया कि नम्र पृथ्वी  पर अधिकार करेंगे| यह यीशु के लिए कैसे हुआ ? (पिता परमेश्वर बीच बचाव करता है और सब कुछ ठीक कर देता है|)  

D. पढ़े भजन संहिता 37:7-11 यह कैसे निश्चित करेगा कि नम्र व्यक्ति पृथ्वी पर राज करेगा ? (परमेश्वर उनका युद्ध जीतता है | वह दुष्ट का नाश करता है | सिर्फ नम्र ही खड़ा रह पायेगा  )

IV. बचाव करने वाले के लिए क्या ? 
A. क्या हम पृथ्वी पर जो भी अन्याय होरा है उससे चुप चाप नम्रता से स्वीकार कर लें ? पढ़े भजन संहिता 82:3-4 और मत्ती 5:38-42 क्या आप इन दो पाठो के बीच मैं सम्बन्ध बना सकते हैं ? क्या हम पुराने नियम कि उपेक्षा करदें इस बात पर कि यह पुराना हो चुका है ? ( दोनों पथ एक दूसरे से जुड़ सकते हैं | एक  आपके अपने हक के लिए खड़ा रहने की बात कहता है दूसरा दूसरों के हक जिन्हें मदद चाहिए उनके लिए खड़ा रहने की बात करता है, अगर मैं इस बात पर ठीक नहीं हूँ तो मैं अपनी वकालत की नौकरी को छोड़ दूं | )

B. मित्र क्या तुम उन लोगों के प्रति अपना रवैया बदलना चाहोगे जो तुम पर हमला करते है और तुम्हारे विश्वास का मजाक उड़ाते हैं? मैं अवश्य ही इस अध्यन के द्वारा मनाता हूँ कि मुझे अपने उत्तेजित स्वभाव को सुसमाचार के बचाव के लिए  बदलने की ज़रुरत है | हमारा यह सोचना कि हम अपने कौशल से सुसमाचार के दुश्मनों को हरा सकते है यह हमारा घमंड और अहंकार है |केवल परमेश्वर हृदय बदल सकता है |क्या तुम मेरे साथ एक नए सिरे से पवित्र आत्मा से पूछोगे कि वह तुम्हें एक नम्र और विनम्र व्यवहार दे ?
V. अगले हफ्ते : आत्मा का फल आत्मसंयम


Introduction: Raspberries are my favorite fruit. Although I like all common fruits, I faintly recall an exotic fruit I did not like because of its bitter taste. If I had to rank the fruits of the Spirit, meekness would not be my raspberries! Consider Jesus' statement in Matthew 5:5 that the meek will inherit the earth. How can that be right? I thought it was the aggressive and hard-working who were successful. I've never read a self-help book that suggested meekness as the road to success. A further problem with the idea of being meek is that most translations (including the NIV) translate the Greek as "gentleness," rather than meekness. What does it mean to be "meek" when dealing with the world? What does it mean to be "meek" when dealing with fellow Christians? Let's explore these mysteries and this unpopular fruit by diving into our study of the Bible!
I. A Meek God?
A. Read Matthew 11:28-30. We have examined this text several times during this series of studies. The word the NIV translates as "gentle" is translated as "meek" in other Bibles. Does meek look good here? Would you prefer to have Jesus use a different term? (I like gentle or meek here, because Jesus is dealing with me!)
1. One commentator wrote "Meekness is the absolute, ceasing to fight for our agenda and believing that God will fight on our behalf for His." What do you think about that statement? (My first reaction was, "That's crazy!" My next reaction was, "If our agenda is not God's agenda, I guess this makes sense.")
a. What if we are trying to make God's agenda our agenda - should we stop fighting?
b. Notice that Matthew 11:29 offers "rest" for our souls. What does this suggest about learning gentleness (meekness) from Jesus? (That this fruit of the Spirit is the key to rest. It is a lot easier to rest if we are not fighting!)
c. The text suggests that Jesus' meekness makes our life better. How? (We discussed the idea of Jesus being gentle with us, but Jesus says "learn from Me." There is something about the meekness of Jesus that will improve our life. Let's turn to that next.)
II. A Meek You?
A. Read Ephesians 4:1-3. Recently, I read a blog attacking my church. The writer claimed to have been a member of the church, but I noticed that the writer always made an error in writing the name of the church. I wrote a response saying essentially "If you do not even know how to write the name of the church, how can you claim to
know enough to criticize it?" My "meek and humble" message: you are an ignorant dolt. The blog author wrote an angry response and the whole endeavor was likely a complete waste of time.
1. What kind of approach would Ephesians 4:1-3 suggest  when someone who attacks your religious beliefs or
your church?
2. What if you are dealing with ignorant dolts, and your thinking is much sharper than the that of the people attacking your beliefs? How does that fit with the instruction to be "completely humble?" (If you are thinking you are a lot smarter, that is not a completely humble attitude, right?)
3. The easy thing is just to ignore people who are annoyingly wrong. How does that fit the direction to be "bearing with one another in love?" (Some judgement is called for here in "bearing" with others. While ignoring someone is often an insult, sometimes that is the only way to avoid an unproductive dispute. We need to decide what would
advance love.)
4. Does Ephesians 4:3 give me an excuse for my blog behavior since we are called to be humble, gentle and loving with fellow members? People who attack the church and pagans in the world had better watch out!
B. Read 1 Peter 3:15-16. Who is being answered here - a church member or the world? (The world!)
1. How does this suggest that we should answer? (With gentleness (meekness) and respect!)
2. How does Peter suggest that the world will treat us? (They will be malicious, but we should respond in a gentle way. The idea is that our gentle answer will cause them to be ashamed of their maliciousness.)
C. Read 2 Timothy 2:22-26. In this text are we dealing with people who know the truth and are logical? (No. These are people who do not know the truth and who engage इस foolish and stupid arguments. These are ignorant people who are not too bright. They make ridiculous arguments.)
1. What kind of approach should we take with them? (Gentle instruction. Meek instruction!)
2. How can you win any arguments this way? How can you show them how stupid, ignorant and ridiculous they
are? (Notice verse 25, God grants them repentance. These texts have opened up my eyes about how I've been missing the mark! My goal has been to show how the pagan's position is illogical and silly. Any reasonable person should laugh at their ideas. But the idea that I can win their heart and mind by making them look foolish is much like the idea that I can earn my own salvation.)
D. Recall that we started with Matthew 11:29 which said that if we learned meekness and humility from Jesus we would have rest? Think about the last time you got into a heated debate about your faith. Did you experience rest?
(I get annoyed when someone attacks Christianity or my specific faith. However, if I lob a "logic grenade" back, and they return with any angry response, I'm more agitated then if I just read the attack and did nothing.)
III. The Inheritance of the Meek
A. Read Philippians 2:5-7. Why do you think Jesus came to earth and made Himself "nothing?" He had all the right and authority to at least come as royalty! (Read Hebrews 4:15-16. Jesus came to earth in such a way that none of us can say that He had some earthly advantage over us.)

B. Read Philippians 2:8. When I think of being meek, I think of giving up my right to be respected. Is this what Jesus did? (Certainly some people did not treat Jesus with respect, but I don't think that was His goal. Instead, His goal was to be like us - not to have the advantages of wealth, position, and power that the average person does not have. Hebrews emphasizes the idea that Jesus experienced what we experience.)
1. How do we apply this concept to our life?(When we argue and defend the faith from the point of view of
superiority: that the other side is stupid, ignorant and evil, we take a much different approach than that of Jesus when He came to earth.)
C. Read Philippians 2:9-11. When we started out in this lesson, I pointed out that no self-help book that I know about argues that we should be meek to win. Yet, Jesus says in Matthew 5:5 that the meek will inherit the earth. How did that happen for Jesus? (God the Father intervened and makes things right.)
D. Read Psalms 37:7-11. How does this suggest that the meek will inherit the earth? (God wins their battle. He destroys the wicked. Only the meek are left standing.)
IV. What About Defenders?
A. Should we just meekly accept whatever unjust thing takes place on earth? Read Psalms 82:3-4 and Matthew 5:38-42. Can you reconcile those two texts? Should we ignore the Old Testament text on the basis that it has been super-ceded? (The two texts can be reconciled. One speaks of standing up for your own rights, and the other speaks of standing up for the rights of others who need help. If I am not right on this, then I need to quit my law job defending the little guy.)
B. Friend, do you need to change how you relate to those who attack and make fun of you and your faith? I have definitely been convinced by this study that I need to change my aggressive approach in defending the gospel. I see now that the idea that we can beat the enemies of the gospel into submission by our own skill is all vanity and arrogance. God, alone, can change hearts. Will you join me in a renewed effort to ask the Holy Spirit to give us a meek and gentle attitude?

V. Next week: The Fruit of the Spirit is Self-Control.

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