Monday, June 21, 2010

पिता तुम्हारा आनंद कहाँ है?/Fathers where is your joy?

परमेश्वर ने परिवार में पिता का स्थान सर्वोपरि रखा है | आज पूरे विश्व में फादर्स डे मनाया जा रहा है| ज़रूरी है कि हम जाने कि हमारे परमपिता परमेश्वर का आनंद कहाँ छिपा है?
एक छोटी सी कहानी बताती हूँ |
यह कहानी एक परमेश्वर के सेवक की है, एक बार उसका पुत्र बिना अनुमति लिए तीन दिन तक स्कूल में हाकी खेलता रहा, जब वह लौटा तब उसके पिता ने उस पर क्रोध किया और उसे तीन दिन तक स्टोर रूम में बंद रहने की सजा सुना दी और कहा कि उसे सिर्फ तीन बार ही खाना दिया जायेगा | जब रात आई और पिता खाना खाने के बाद बिस्तर पर आराम करने लेटा, उसे अपने पुत्र के स्टोर रूम में अकेले होने का अहसास हुआ, और उससे ना रहा गया | वह स्टोर रूम तक गया और अपने पुत्र को जागता हुआ पाया | पुत्र पिता के चिपक गया पिता ने भी उसे अपने गले से लगा लिया | उसने पुत्र को माफ़ कर दिया लेकिन फिर भी सजा तो सजा थी, जो उसे पूरी करनी थी | पिता ने उस सजा को कठिन पाया, और पूरी रात अपने पुत्र के साथ उसी स्टोर रूम में बिताई | क्या मुझे ये बताने की ज़रुरत है कि उसके दूसरे दो दिन कैसे बीते?
हाँ! स्टोर रूम में ही लेकिन पिता-पुत्र दोनों ने साथ समय बिताया|
ठीक उसी तरह जैसे हमारा परमपिता शरीरधारी हुआ और यीशु में उसने हमारे पापों की सजा उठाई |
आज के दिन अपने परमपिता के बिलकुल करीब चले जाओ वे तुम्हे क्षमा कर देंगे
पिता आज का सन्देश तुम्हारे लिए है लेकिन तुम परिवार का सिर हो इस तरह यह सन्देश पूरे परिवार के लिए हुआ|
पढ़ें लुका 15:11-24
इस दृष्टांत में परमपिता परमेश्वर का आनंद छिपा है |
जबकि उस व्यक्ति का छोटा पुत्र अपने पिता से अपना हिस्सा ले लेता है और जब उसका सब कुछ नष्ट हो जाता है तब उसे फिर से अपने पिता की याद आती है
पिता जैसे ही उसको देखता है उसके प्रति अनुराग से भर जाता है और उसे सीने से लगा लेता है | उसके लौट आने की ख़ुशी में जश्न मनाता है, उसे हर श्रेष्ठ वस्तु प्रदान करता है,
क्योंकि उसका सम्बन्ध जो टूट चुका था एक बार फिर जुड़ गया |
माता-पिता अपने बच्चों के हर अपराध को माफ़ कर देतें है, लेकिन बच्चों को भी अपने पापों को या गलतियों को उनसे नहीं छिपाना चाहिए
इस दृष्टांत की सबसे अच्छी लाइन जो मुझे लगाती है वह है, यह मेरा पुत्र है जो पहले मर गया था अब जीवित जो गया है
बोलो- अभी तक मैं अपने पापों के कारण परमेश्वर से दूर था लेकिन आज यीशु में मुझे क्षमा है
हमारे सीखने  के लिए यहाँ पर दो मुख्य बातें है
1 . पिता का आनंद उसकी संतानों में छिपा है
2 . पिता परमपिता की छवि में है
इसका मतलब है कि पिता का स्वभाव परम-पिता परमेश्वर जैसा है

परम-पिता कैसा है?
1. परमेश्वर हमारा पालन पोषण करने वाला है,
2. परमेश्वर हमारी रक्षा करने वाला है
3 . परमेश्वर हमारी गलतियों पर हमे सजा के द्वारा सिखाने वाला है
4 . परमेश्वर हमारा आदर्श है
5 . परमेश्वर हमारा महा याजक है
यीशु में उसने सब बातें पूर्ण कर दी है, पिता तुम्हारे ऊपर पिता ने जो जिम्मेदारी सौंपी हैं उन्हें निभाने के लिए तुम्हें यीशु की ज़रुरत है
पढ़ें मत्ती 11:28-30
अपने स्थान पर खड़े हों
आज आनंद या खुशी आपसे कितनी भी दूर क्यों ना हो,
चाहे कितना भी मन उदास क्यों ना हो
चाहे कैसी भी परिस्थित क्यों ना हो
खोये हुए पुत्र के सामान लौट कर आ जाने का समय आ गया है
जब हमारा स्वर्गीय पिता हमे सब आनंद देने को तैयार है तो हमे तुरंत उसके पास भाग कर जाना है
सभा में जितने भी पिता हो आज तुम अपने परिवार के लिए पुरोहित हो
अपने और अपने परिवार के लिए माफ़ी मांगो
उनके सिर पर हाथ रख कर उनें आशीर्वाद दो
बिमारियों और बाधाओं को दुत्कारो
परमेश्वर ने यह अधिकार तुम्हें तुम्हारे परिवार के लिए दिया है
प्रार्थना करो
पढ़ें युहन्ना 14 :27
यीशु ने तुम्हें अपनी शान्ति दी, वह उसका पवित्र आत्मा है और वो तुममे है
अगर परमेश्वर का आत्मा तुममे है तो तुम्हारी ताकत कहाँ है
पढ़ें हबक्कुक 3 : 19
परमेश्वर तुम्हारी ताकत है
पढ़ें नहेम्याह 8 :10
परमेश्वर तुम्हारी सामर्थ है
फिर पिता अगर आज तुम अपनी परस्थितियों से परेशान हो तो इसके सिर्फ तीन कारण हो सकतें हैं
1 . तुमने परमेश्वर को स्वीकार नहीं किया है
2 . तुमने अपने पापों को अंगीकार नहीं किया है पढ़ें भजन संहिता 51 : 12
3 . आपकी प्रेरणा गलत है पढ़ें मत्ती 6 : 21
आज का दिन तुम्हारे लिए है
बोलो- प्रभु का आनंद है मेंरी ताकत
बोलो- मैंने अपनी शान्ति प्रभु यीशु में पा ली है
बोलो- मेरा परिवार यीशु के लहू में छिपा है
बोलो-मेरी उदासी चली गई है
बोलो- में अपना सारा बोझा प्रभु यीशु को दे चुका हूँ
बोलो-यशायाह 62 : 5 के अनुसार मेरा परमेश्वर मुझ पर हर्षित है
बोलो- लुका 15:7-10 के अनुसार मैंने अपने पापों की क्षमा पा ली है इसलिए स्वर्गदूत आनंदित है
मेरी प्रार्थना -
पिता प्रभु यीशु के नाम पर, मैं प्रार्थना करती हूँ कि जो खेदित मन वाले है आप में शांति और आनंद पाए, जो शरीर से पीढित है वे चंगाई पायें, जिन्होंने अपने माता-पिता के प्रति अपराध किया है वे उनसे माफ़ी पाए और दीर्घ आयु वाले हो
आमीन

Fathers where is your joy?

God has placed fathers as the head in a family. Father’s Day is being celebrated today all over the world. It is important that we know where the joy of our Supreme Father, God is hiding?
I’ll tell you a story-
This is a story of a minister. Once his son, without permission from his family, played a hockey game in his school for three days. When he came back, his father was very upset with him and he asked him to remain in the store room for three days. He was told he will be given meals three times a day in the store room. That night after having the dinner, when the minister went to rest he just remembered his son. He couldn’t control it, and he went to see him. He saw him awake. The son saw his father and he hugged him, his father’s heart melted, it couldn’t control him. He hugged him and spent the night with his son in that room. Yes, he shared the same room with his son for other two days as well.
The same way Father God incarnated in Jesus and carried all our burdens and paid the price for you and me.
Today, if you go one step he is ready to forgive all your sins. Father’s this message is for you but as you are the head of the family so this message rolled down to all the members of your family as well.
Read Luke 15:11-24
Joy of the father is hidden in this parable
That man’s younger son takes his share from his father and misuses all of it, then he remembers his father. When father sees him he hugs him with affection and has celebration in the joy of his son’s return. He provides him all good things because his son who left the house once again came back and his relationship with his father was restored.
Parents forgive all the mistakes and sins of their children, but children also need to tell the truth to their parents and not to hide any sin.
The best line I find in this parable is, “For this son of mine was dead and is alive again.”
We learn here two important facts-
1.    Fathers’ joy is hidden in their children
2.    God has created them in His image
It means fathers have the nature of God.
How is our God?
1.    He is our provider
2.    He is our protector
3.    He is our teacher/rebuke
4.    He is our leader
5.    He is our priest
In Jesus God has fulfilled all, what we need. Fathers, your heavenly father has given you a responsibility. You cannot do it in your strength you need Jesus.
Read Matthew 11:28-30
Stand at your feet
Today you might be experiencing joy or happiness far from you
You may be feeling disappointed
You may be having tough situation
Today is the day come back to your heavenly father
Our heavenly father is ready to provide all good things to you, so turn to Him
Every single fathers in this assembly you must know that you are a priest to your family
Ask God to forgive you and your family
Lay your hand on your family members and bless them
Rebuke the hindrances and sicknesses
God the Father has given you this right for your family
Pray for them
Read John 14:27
Jesus gave His peace, that is His Holy Spirit and He is in us
If God’s spirit is in you then where is your strength
Read Habakkuk 3:19
Lord is your strength
Read Nehemiah 8:10
Lord is your strength
Then, fathers if you are troubled with your circumstances, it is mainly because of three reasons
1.    You have not accepted Jesus as your Lord and savior
2.    You have not confessed your sins, read Psalms 51:12
3.    You have wrong motives, read Matthew 6:21
Today is your day, I say once again today is your day
Say- Lord is my strength
Say- I have peace in Christ
Say- my family is hidden under the blood of Jesus Christ
Say- my disappointments have left me
Say- I have given all my burden to Jesus
Say- As per Isaiah 62:5, my Lord rejoices over me
Say- As per Luke 15:7-10, I have received forgiveness of my sins that’s why angels rejoice over me
Prayer-
Father in the name of Jesus, I pray those who are heavy laden get joy in you, those who are sick in their body, get healing, those who have sinned against their parents get forgiveness and live a long life
Amen!

Saturday, June 12, 2010

प्रेम एक भावना नहीं यह एक विकल्प है/Love is not a feeling it's a choice


प्रेम एक भावना नहीं यह एक विकल्प है
यदि हम उत्पत्ति 1:28 और 31 पढ़ें तो पता चलता है कि परमेश्वर ने आदम और हवा को आशीषित किया और जो भी परमेश्वर ने रचा वह सब अच्छा था |
इसका मतलब है कि जो कुछ भी परमेश्वर ने रचा वह पवित्र था, अमर था और आशीषित था 
लेकिन उत्पत्ति 3:6 और 7 से पता चलता है कि पहले मनुष्य और उसकी स्त्री ने पाप किया और उसके फल स्वरुप परमेश्वर का प्रेम प्रकट हुआ | परमेश्वर ने इस पृथ्वी को शापित कर दिया और मनुष्य को कठिन परिश्रम व अपने पर्यावरण की देख भाल एक ट्रेनिंग के तौर पर दे दी, जिससे कि उसके उद्धार की योजना  फलान्वित हो सके, क्योंकि मनुष्य का प्रेम स्वार्थी हो गया था |
परमेश्वर ने अपना पुत्र यीशु हमारे लिए दिया, जो कि हमारा चंगा करने वाला और उद्धारक है 
उसके कार्य ने उसके दैविक अभिषेक को सिद्ध कर दिया 
उसके हर कार्य में प्रेम, करुना और अनुराग स्पष्ट दिखाई दिए 
उसी पुत्र ने हमे अपनी पवित्र आत्मा दी और हमें अपना निवास स्थान बना लीया 
इब्रानियों 13:8 कहता है कि यीशु मसीह जैसा कल थ, वही आज है और सर्वदा रहेगा 
आज यीशु को वही प्रेम, ज़रूरतमंदों को दिखाने के लिए, हमारे शरीर की ज़रुरत है 
1 कुरंथियों 6:19 कहता है कि तुम पवित्र आत्मा के मंदिर हो
क्या तुम सोचते हो कि परमेश्वर अपने राज्य के लिए तुम्हें अपने वरदान और फल देगा?
किस तरह के प्रेम को परमेश्वर प्रकट करना चाहेगा?
पढ़ें लुका 4:18, 
यीशु का दिल द्रवित हुआ  
यीशु ने मनुष्य का स्वभाव लिया 
यीशु प्रेम से उनके करीब गया 
लोगों ने उसके प्रति कैसी प्रतिक्रिया की?
लोग उसके प्रति आकर्षित हुए 
लोग उसके द्वारा उत्साहित हुए 
लोगों ने उसे प्यार किया 
तुम्हारे विषय में क्या है, क्या तुम अपने शरीर को उसका मंदिर कहना चाहोगे?
पढ़ें 1 कुरंथियों 6:19-20, 
मैं अपना पहले वाला प्रश्न दोहराना चाहूंगी, क्या तुम सोचते हो कि परमेश्वर अपने राज्य के लिए तुम्हें अपने वरदान और फल देगा?
हाँ! 
इसका मतलब इस शरीर के देखभाल की ज़रुरत है 
इसका मतलब है कि इस शरीर, आत्मा और आत्म जीव के देखभाल की ज़रुरत है 
ऊपर वाला वचन कहता है कि उसने अपनी आत्मा अर्थात अपना स्वभाव हमें दे दिया है 
ठीक!
मैं तुम्हें एक उधारण देती हूँ -
जब मेरा पुत्र जन्मा तो वह कुछ मेरे और कुछ अरुण के स्वभाव को लेकर जन्मा | जैसे-जैसे वह बड़ा होता गया उसके व्यवहार में हमारे व्यवहार की झलक दिखाई दी, क्योंकि वह हमारे संग-संग रह रहा था 
तुम नया जीवन पा चुके हो, परमेश्वर तुम्हारा पिता है और तुम परमेश्वर के निवास स्थान हो, इसका मतलब है कि परमेश्वर तुम्हारे संग-संग है 
अगर तुम परमेश्वर के हाथ में अपना नियंत्रण दे दो, तो तुम उसके स्वभाव के सहभागी हो जाओगे, लेकिन याद रहें- परिपक्वता एक प्रतिक्रिया है |
एक पल लो और अपने आप को जांचों 
क्या तुम्हारा दिल लोगों के लिए द्रवित हुआ है?
क्या तुमने यीशु के स्वभाव को ग्रहण किया है?
क्या तुम्हारा दृष्टिकोण लोगों के प्रति प्रेम भरा है?
क्या तुम यीशु को तुम्हें अपने स्वभाव में रूपांतरित करने की अनुमति दोगे?
हाँ!
उसका स्वभाव कैसा है?
पढ़ें गलातियों 5:22-23, 
मैंने अपने पिछले सन्देश में नौ नहीं बल्कि पवित्र आत्मा के बारह फल का जिक्र किया था 
पढ़ें प्रकाशित वाक्य 22:1-2, 
फिर 
पढ़ें यहेज़केल 47:9-12, 
दो भिन्न पुस्तकों में से इन वचनों को पढ़ने के बाद यह निश्चित हो जाता है कि परमेश्वर हमारे शरीर और स्वभाव के प्रति चिंतित है और उसके स्वभाव के बारह अलग-अलग स्वाद है 
क्या तुम परमेश्वर के स्वभाव को खोजने के लिए तैयार हो?
चलिए हम प्रेम से शुरुआत करते है 
 पढ़ें 1 थिस्सलुनीकियों  4:9
कौन तुम्हें प्रेम सिखाएगा?
आज के सामाज में प्रेम शब्द का दुरूपयोग होता है 
इस शब्द की हम इस तरह व्याख्या कर सकते है 
1. परमेश्वर का प्रेम-अनुराग जो बिना शर्त है 
2. पति-पत्नी का प्रेम-लगाव जो एक दूसरे के प्रति है 
3. पारिवारिक प्रेम जो परिवार के सदस्यों में होता है 
4. आपसी-प्रेम जो भाई-चारे या मैत्रीपूर्ण है 
इसके अतिरिक्त प्रेम अपवित्र है 
अब कौन है जो तुम्हें प्रेम सिखाएगा?
बोलो-पवित्र आत्मा
याद रहें 
वरदान दिए जातें है लेकिन फल विकसित होतें है 
अगर तुम एक फल का पौधा लगाना चाहो तो तुम क्या करोगे?
1. एक फल का चुनाव करोगे 
2. उसके लिए एक स्थान निर्धारित करोगे 
3. मिटटी की गुडाई करोगे 
4. पौधा लगाओगे 
5. जमीन सोफ्ट और गीली रखोगे 
6. उसका रखरखाव या ध्यान रखोगे 
इसका मतलब है पौध लगाने के पहले तुम छाटोगे और फिर चार से पांच साल तक उसकी देखभाल करोगे 
उसके बाद उस फल के पौधे का रूप दिखाई देगा 
इससे यह स्पष्ट पता चलता है कि परिपक्वता एक रात में नहीं आती, जैसे एक पेड़ का फल एकदम से नहीं बनाता उसी तरह एक व्यक्ति का गुण भी परिपक्व होने में समय लेता है 
यीशु ने मनुष्य के चरित्र के बारे में कहा 
पढ़ें मत्ती 7:16-20
मैं तुमसे प्यार करता हूँ यह कहना जितना सरल है, किसी को प्रेम करना उतना ही कठिन है 
ध्यान से सुनो aur jaanchon -
1. परमेश्वर के प्रति हमारा प्रेम प्रदर्शन 
पढ़ें मालकी 3:8, 
अगर तुम परमेश्वर को दे नहीं सकतें हो तो तुम्हें परमेश्वर पर भरोसा नहीं है, फिर परमेश्वर के प्रति तुम्हारा प्रेम कहाँ है? 
2. लोगों के प्रति हमारा प्रेम प्रदर्शन 
जब कोई व्यक्ति तुम्हारी मर्जी के विपरीत और तुम्हें अपशब्द कहें, तुम भड़क पड़ते हो, तुम्हारा लोगों के प्रति प्रेम कहाँ गया?
यीशु ने पिता से उसे पीढ़ा पहुचाने वालों को माफ़ कर देने को कहा 
3. पवित्र आत्मा के प्रति हमारा प्रेम प्रदर्शन 
पढ़ें गलातियों 5:19-21, 
कितनी बार दूसरो को आगे बढ़ता देख कर तुम्हारा दिल ईर्ष्या से भर जाता है, क्या तुम भूल गए कि तुम पवित्र आत्मा का मंदिर हो? 
2 राजा 18:30-38, में एलिया ने वेदी को पूरी तरह पानी से भिगो दिया लेकिन उसने जैसे ही परमेश्वर को आवाज़ लगाई स्वर्ग से आग उतरी और सब जला गई |
आज फिर उसी आग की हमें ज़रुरत है
आग जो हमारे चरित्र से सब कुछ जो अशुद्ध है जला दे 
जब अशुद्ध जल जायेगा बीमारियाँ भाग जायेंगी, तकलीफें भाग जायेंगी 
तब तुम पवित्र आत्मा का पवित्र मंदिर होगे 
जिसके हाथ लोगों को चंगाई देंगे 
जिसकी उपस्थिति लोगों को आशीषित करेगी 
अपने स्थान पर खड़े हो, 
परमेश्वर तुम्हे प्रेम सिखाना चाहता है 
क्या तुम प्रेम सीखने के लिए तैयार हो?
क्या तुम प्रेम को एक विकल्प बना रहें हो 
चलो प्रार्थना करें 
पिता परमेश्वर, होने पाए कि मैं आप के प्रेम से भर जाऊं  इसलिए मेरी मदद करें, ताकि मैं अच्छे फल धारण कर सकूं, मेरी मदद करें ताकि मैं अच्छे और बुरे फल को परख सकूं और मुझमें परमेश्वर का बिना शर्त वाला अनुराग बह सके प्रभु यीशु के नाम पर|
आमीन 
Love is not a feeling it's a choice
If we read Genesis 1:28a and 31a. It says God blessed them(Adam and Eve) and all whatever He created was good.
It means whatever God created on the Earth was holy, free from decay and nothing was cursed.
But in Genesis 3:6 and 7 tells us The first man and woman sinned. The result from sin revealed God's love and God cursed the land and allowed man to toil and care his surrounding as a part of training for the uplifting plan of God's redemption because man's love was replaced with selfishness.
God gave His son Jesus for us, who is our healer and redeemer 
His work gave evidence of His divine anointing 
Love, mercy and compassion were revealed in every act of His life
The same son gave His spirit to us and made us His dwelling place
Hebrew 13:8 says, Jesus Christ is the same yesterday, to day, and for ever 
Today Jesus needs our body to show the same love to the needy
1 Corinthians 6:19 says you are the temple of Holy Spirit
Do you think God will give us His gift and fruit for His kingdom?
What type of love God wants to show others?
Read Luke 4:18, Luk 4:18  "The Lord's Spirit has come to me, because he has chosen me to tell the good news to the poor. The Lord has sent me to announce freedom for prisoners, to give sight to the blind, to free everyone who suffers, 
Jesus tendered His heart
Jesus took man's nature
Jesus approached to them in love
How did people react to Him?
They were attracted towards Him
They were encouraged by Him
They loved Him
what about you, do you call yourself the temple of Holy Spirit?
Read 1 Corinthians 6:19-20, You surely know that your body is a temple where the Holy Spirit lives. The Spirit is in you and is a gift from God. You are no longer your own. God paid a great price for you. So use your body to honor God. 
I repeat my previous question, Do you think God will give us His gift and fruit for His kingdom?
Yes!, it means there is a demand of taking care of our body
It means taking care of body, soul and spirit. Above scripture tells us He has given His spirit that means his own nature to us
Right!
I will show you one example-
When my son was born, he was born with some of the nature of mine and Arun. As he grew he talked and behaved like us, because he was having fellowship with me and Arun.
You are born again, you are the dwelling place of God, it means God is having fellowship with you
If you allow God, you will have His nature but remember, maturity is a process
Take a moment and Examine your self-
Have you tendered your heart?
Have you taken His(Jesus) nature?
Do you approach people in love?
Will you allow Him to transform you with His nature?
YES!
What is His nature?
Read Galatians 5:22-23, But the fruit of the Spirit is love, joy, peace, longsuffering, gentleness, goodness, faith, Meekness,temperance: against such there is no law.
In my last message I mentioned that there are not 9 but 12 flavors of the fruit of the Holy Spirit. 
Read Revelation 22:1-2, The angel showed me a river that was crystal clear, and its waters gave life. The river came from the throne where God and the Lamb were seated. 
Then it flowed down the middle of the city's main street. On each side of the river are trees that grow a different kind of fruit each month of the year. The fruit gives life, and the leaves are used as medicine to heal the nations
Read Ezekiel 47:9-12, Wherever this water flows, there will be all kinds of animals and fish, because it will bring life and fresh water to the Dead Sea. From En-Gedi to Eneglaim, people will fish in the sea and dry their nets along the coast. There will be as many kinds of fish in the Dead Sea as there are in the Mediterranean Sea. But the marshes along the shore will remain salty, so that people can use the salt from them. Fruit trees will grow all along this river and produce fresh fruit every month. The leaves will never dry out, because they will always have water from the stream that flows from the temple, and they will be used for healing people
After reading these scriptures from two different books, we can see for sure that God is concern about our body and nature and He has 12 kinds of different flavor(quality) of His spirit
Are you ready to explore God's nature?
Let's begin with love!
Who will teach you to love?
Read 1 Thessalonian 4:9
Love is well abused word in today's society, which speaks mostly carnal ways
We can define love this way
Agape - God's Love which is unconditional
Eros - Husband wife Love
Storge - Family Love
Ph ilia - Brotherly and friendly Love, 
Who will teach you love? 
Say Holy Spirit
Remember 
gifts are given but fruits are developed 
In natural if you decide to plant a Fruit Tree what will you do?
1. Choose a Fruit Tree
2. Choose a Location
3. Prepare the Soil
4. Plant
5. Stake, Mulch, Feed, and Water
6. Maintenance 
It means pruning your fruit tree at planting and taking care of it during the first 4 to 5 years 
Then it can set the structure and growth pattern of your fruit tree.
That shows us clearly that maturity does not come overnight. Even as maturity is not sudden, so also is the fruit of a tree or fruit(quality) of a person 
It will be produced naturally and spontaneously. Gifts of the Holy spirit is the result of your faith but fruit of the Holy spirit is the result of your action. It takes time to grow. It is your product.
Jesus spoke about the man's character
Read Matthew 7:16-20
You will know them by their fruits. Are grapes gathered from thorns, or figs from thistles? So, every sound tree bears good fruit, but the bad tree bears evil fruit. A sound tree cannot bear evil fruit, nor can a bad tree bear good fruit. Every tree that does not bear good fruit is cut down and thrown into the fire. Thus you will know them by their fruits.
It is very easy to say some one I love you but it is very hard to love some one.
We have to show 
1. our love towards God-
Malachi 3:8, says You people are robbing me, your God. And, here you are, asking, "How are we robbing you?" You are robbing me of the offerings and of the ten percent that belongs to me
If you cannot give to God it shows you do not trust in Him. Where is your love for God!
2. our love towards man-
when someone is favoring you or doing as per your will you feel all joy and love and happiness, what about when situation goes little not favorable?
We react annoyed!!!, and even we stop praying for our brothers rather we speak adverse about them 
Where is your love for people gone!!!!!!!!!!!
3. our love towards Holy Spirit-
Read Galatians 5:19-21, The acts of the sinful nature are obvious: sexual immorality, impurity and debauchery; idolatry and witchcraft; hatred, discord, jealousy, fits of rage, selfish ambition, dissensions, factions and envy; drunkenness, orgies, and the like. I warn you, as I did before, that those who live like this will not inherit the kingdom of God.
Are you infected with any of theses sicknesses?
You need to find out yourself, where do you stand today, 
Your love towards Holy Spirit will lead you to make yourself pure and holy before God 
Your right standing with God will make all evil to run from you and you will experience God's mighty hand upon you as it was with Elijah 
Read 2 King 18:30-38, Then Elijah said to all the people, "Come here to me." They came to him, and he repaired the altar of the LORD, which was in ruins. Elijah took twelve stones, one for each of the tribes descended from Jacob, to whom the word of the LORD had come, saying, "Your name shall be Israel." With the stones he built an altar in the name of the LORD, and he dug a trench around it large enough to hold two seahs of seed. He arranged the wood, cut the bull into pieces and laid it on the wood. Then he said to them, "Fill four large jars with water and pour it on the offering and on the wood." "Do it again," he said, and they did it again. "Do it a third time," he ordered, and they did it the third time. The water ran down around the altar and even filled the trench. At the time of sacrifice, the prophet Elijah stepped forward and prayed: "O LORD, God of Abraham, Isaac and Israel, let it be known today that you are God in Israel and that I am your servant and have done all these things at your command. Answer me, O LORD, answer me, so these people will know that you, O LORD, are God, and that you are turning their hearts back again."Then the fire of the LORD fell and burned up the sacrifice, the wood, the stones and the soil, and also licked up the water in the trench.
Notice the word altar, ruin and Israel, 
Let me tell you today, if you are ready to prepare your self as an holy altar of God, His fire is willing to consume all troubles from you but you have to come to an agreement with the spirit of God 
God is ready to teach you His love
Are you ready to learn?
Are you ready to make love your choice?
Pray 
"Lord, may I bear good fruit for your sake.  Help me to reject whatever will produce evil fruit.  And help me grow in faith, hope, love, sound judgment, justice, courage, and self control." 
In Jesus' name
Amen

Sunday, June 6, 2010

तुम कौन हो? / Who are you?

तुम कौन हो?
परमेश्वर का मंदिर हो
पढ़ें 1 कुरिन्थियों 6:19-20
क्या तुम नहीं जानते की तुममें से प्रत्येक की देह पवित्र आत्मा का मंदिर है, जो तुममें है और जिसे तुमने परमेश्वर
से पाया है, और की तुम अपने नहीं हो |
एक बहती नदी हो
पढ़ें यहेजकेल 47:9-12
और फिर ऐसा होगा की जहाँ-जहाँ यह नदी बहती है वहां-वहां बहुत झुण्ड में रहने वाले हर प्रकार के प्राणी जीवन पाएंगे | वहां अत्यधिक मछलियाँ पाई जायेंगी क्योंकि वह जल जहाँ-जहाँ जाता है वहां का जल मीठा हो जाता है| अतः जहाँ जहाँ यह नदी पहुंचेगी वहां-वहां सब कुछ जीवित रहेगा | तब ऐसा होगा मछुए उसके तट पर खड़ा हुआ करेंगे | एन्गादी से एनेग्लैम तक जाल डालने का स्थान हगा, महासागर के सामान वहां अनेक प्रकार की बहुत सी मछलियाँ पाई जायेंगी | परन्तु उसके पास के दलदल और गड्ढों का जल मीठा ना होगा, वे स्थान नमक के लिए छोड़ दिए जायेंगे | और नदी के तट पर दोनों तरफ खाने के लिए सब प्रकार के वृक्ष उगेंगे | उनके पत्ते मुरझाएंगे नहीं और उनकेफल समाप्त नहीं होंगे | वे हर महीने फलते रहेंगे क्योंकि उनको सींचने वाला पानी पवित्र स्थान से बहता है, उनके फल भोजन के लिए और पत्ते चंगाई के लए काम आएंगे|
फल आप के चारों ओर हैं
आपकी उपस्थिति दूसरों के लिए चंगाई है
इसका मतलब है, आप पवित्र बने रहने के लिए बुलाये गएँ है
लेकिन पाप अभी भी एक समस्या है
सही है!
पढ़ें गलातियों 5:21
और; ईर्ष्या मतवालापन, रंगरेलियां तथा इस प्रकार के अन्य काम हैं, जिनके विषय में, मैं आपको चेतावनी देता हूँ जैसा पहले चेतावनी दे चुका हूँ कि ऐसे-ऐसे काम करने वाले तो परमेश्वर के राज्य के वारिस न होंगे| पौलुस पहले विश्वासियों को क्या चेतावनी दे चुका है?
पढ़ें 1 कुरिन्थियों 6:9-10
क्या, तुम नहीं जानते कि दुष्ट लोग परमेश्वर के राज्य के अधिकारी नहीं होंगे? धोखा ना खाओ; ना व्यभिचारी, ना मूर्तिपूजक, ना परस्त्री गामी, ना कामातुर, ना पुरुषगामी, ना चोर, ना लोभी, ना पियक्कड़, ना गलियां बकने वाले, और ना लुटेरे परमेश्वर के राज्य के उत्तराधिकारी होंगे|
इन वचनों से पता चलता है कि इस तरह की जीवन शैली जीने वाले लोग हैं| यह हमारे इस प्रकार के व्यवहार के लगातार होने वाले स्वभाव से सम्बंधित है
इसका मतलब है, कि यह एक आदमी की आदत है और वह बदल नहीं रहा है
इसका मतलब यह नहीं कि यदि एक बार आपने पाप कर लिया तो आप नरक में जाने के लिए बाध्य हो गएँ है
1 युहन्ना 1:7 हमें बताता है कि यदि हम अपने पापों को अंगीकार कर लें तो परमेश्वर उन्हें और हमारे अपराधओं को भी हटा देगा
तो परमेश्वर के प्यारे बच्चों इस प्रकार के व्यवहार के पाप से सचेत रहो, वे खतरनाक होते हैं जैसे जैसे हम हमारे मंदिर (शरीर) की सफाई की दिशा में कदम उठाये, यह महत्वपूर्ण है कि हम पवित्र आत्मा के फल के बारे में जाने
यह कुछ इस प्रकार हैं कि हम जानते हैं कि हर अच्छा काम जो हम करते हैं हमारे लिए एक अच्छा नाम देगा, प्रोत्साहन देगा या कुछ इनाम देगा तो हम उसे पूरे यत्न से करतें हैं
चलो पढ़ें गलातियों 5:22-23
लेकिन आत्मा का फल प्रेम, आनन्द, शांति, धैर्य, दया, भलाई, विश्वास, नम्रता और आत्म नियंत्रण है| ऐसे कामों के विरूद्ध कोई व्यवस्था नहीं है
मुझे यह वचन बहुत प्रिय हैं और मुझे सदा से यह बात भी बहुत प्रिय है, जब भविष्यवक्ता ने मेरे लिए यह भविष्यवाणी की कि तुम परमेश्वर के द्वारा चुनी गई हो, तुम यहोशू की पीढ़ी हो
क्या तुम जानते हो ऐसा क्यों?
ऐसा दो बातों के कारण है
1. मूसा की दोषारोपण आत्मा अब नहीं है
2. हम अपने चुने हुए स्थान में प्रवेश करेंगे.
यह कितना सुन्दर और मनभावन विचार है!
हम में से कितने लोग यह जानते हैं कि एक फल को बढ़ाने और पकाने में समय लगता है?
मैं विश्वास करती हूँ कि हम सब यह जानते है.
क्या आप जानते हैं कि पवित्र आत्मा का केवल एक फल है लेकिन आपने सोचा कि नौ थे?
सही है?
नहीं!
सिर्फ एक ही फल है!
क्या यह आश्चर्यजनक नहीं है?
मैंने हमेशा पवित्र आत्मा के फल का अध्ययन किया लेकिन इस सच्चाई को कभी नहीं खोजा
लेकिन आज मैं आपको बताना चाहूंगी कि पवित्रा आत्मा के फल के 9, नहीं लेकिन 12 स्वाद हैं.
क्या आप और अधिक धन्य होने के लिए तैयार हैं?
क्या इस बारे में कोई शक है?
यदि नहीं, बहुत अच्छा,तुम कुछ नया सीखोगे
यदि हाँ तो ध्यान से सुनो
पवित्र आत्मा का फल प्यार है -> प्यार के लिए विनम्रता की जरूरत है -> विनम्रता -> जिसके माध्यम से दयालुता है -> दयालुता -> जिसके माध्यम से धैर्य है -> धैर्य/सब्र -> जिससे शांति जो खुशी देती है -> खुशी -> खुशी एक व्यक्ति को प्यार और दयालुता से भरती है!
हमारे आसपास के लोग शांति प्यार खुशी आदि की नदी,के लिए प्यासे हैं, पैसे या संपत्ति के लिए नहीं
उन्हें ऐसी नदी की जरूरत है जो परमेश्वर के मंदिर से बहती है, जो समृद्धि, आश्रय, फल, शांति, और खुशी का उत्पादन करेगा
तुम कौन हो?
याद रहें कि तुम परमेश्वर का मंदिर हो!
अपने आप को परमेश्वर के पात्र की तरह देखो
अपने आप को दूसरों की प्रार्थना करते हुए देखो
अपने आप को दूसरों के लिए आशीष के रूप में देखो
लोगों को आशीषित होता हुआ देखो
क्योंकि नदी तुमसे बह रही है
बोलो परमेश्वर से कि तुम्हें प्रयोग में लाये
क्योंकि तुम उसका मंदिर हो, इसलिए अपने आप को दोष रहित रखो
आमीन

Who are you? 
The Temple of God
Read 1 Corinthians 6:19-20, Do you not know that your body is a temple of the Holy Spirit, who is in you, whom you have received from God? You are not your own; you were bought at a price. Therefore honor God with your body.
A flowing river
Read Ezekiel 47:9-12, Swarms of living creatures will live wherever the river flows. There will be large numbers of fish, because this water flows there and makes the salt water fresh; so where the river flows everything will live. Fishermen will stand along the shore; from En Gedi to En Eglaim there will be places for spreading nets. The fish will be of many kinds—like the fish of the Great Sea. But the swamps and marshes will not become fresh; they will be left for salt. Fruit trees of all kinds will grow on both banks of the river. Their leaves will not wither, nor will their fruit fail. Every month they will bear, because the water from the sanctuary flows to them. Their fruit will serve for food and their leaves for healing.
Fruit is growing around you
Your presence bring healing to others
It means you are called to be holy.
But sin is still a problem
Right!
Let’s read Galatians 5:21,
..and envy; drunkenness, orgies, and the like. I warn you, as I did before, that those who live like this will not inherit the kingdom of God.
What did he tell the believers before?
Read 1 Corinthians 6:9-10, Do you not know that the wicked will not inherit the kingdom of God? Do not be deceived: Neither the sexually immoral nor idolaters nor adulterers nor male prostitutes nor homosexual offenders 10nor thieves nor the greedy nor drunkards nor slanderers nor swindlers will inherit the kingdom of God
These scriptures indicate that there are people living a lifestyle like this. It shows us the continuous action of such type of behavior. 
It means it is a man's habit and he is not changing. 
This does not mean that once you have committed this type of sin that you are bound to go to hell.
1 John 1:7 tells us that if we confess our sins, God will remove them and also the guilt.
So dear Children of God, be aware of habitual sins, they are dangerous. As we move towards the cleansing of our temple(body), it is important to know the fruits of the spirit.
It is like how we know that every good work we do which we know will bring us a good name, encouragement, or some reward, we tend to do that diligently. 
Let's read Galatians 5:22-23
But the fruit of the Spirit is love, joy, peace, patience, kindness, goodness, faithfulness, gentleness and self-control. Against such things there is no law.
I love these words and I always have loved it when I heard someone prophesy over me saying that you are the chosen one, you are the Joshua generation.
Do you know why?
Because of two things,
1 - The judging spirit of Moses is over
2 - We will enter into our promise land.
What an awesome and pleasing thought! 
How many of us know that a fruit takes time to grow and ripen?
I believe all of us do.
Do you know that there is only one fruit of the Holy Spirit but you thought there were nine?
Right?
No!
But there is only one fruit!
Isn't it amazing?
I always studied the fruit of the Holy Spirit but never discovered this truth. 
But today I will tell you that there are not 9 but 12 flavors of the fruit of the Holy Spirit. 
Are you ready to be blessed more!
Do you have any doubts about it?
If No, very good, you will learn something new today
If yes, then listen carefully
Fruit of the Holy Spirit is Love --> for loving humility is needed --> Humility --> through which we have kindness --> Kindness --> through which we will have patience --> Patience --> which allows peace to produce joy --> Joy --> a joyous person is loving and kind! Can you see God is love and His fruit is one!
People around us are thirsty for their river of love joy peace etc, not of position, not of money or property.
They need the river to flow from the temple of God, which will produce prosperity, shelter, fruit, peace, productivity, and joy
Who are you?
Remember you are the temple of God!
Stand on your feet, ask God to use you to help other
See yourself as God's vessel 
See yourself praying for others
See yourself a blessing for others
See people get blessed
Because river is flowing from you
Ask God to use you for others
Cry and pray in tongues

Amen