जन्म एक बच्चे का पहला अनुभव है, जब वह अपनी माँ के गर्भ के गर्म और सुरक्षित वातावरण से दूर जाता है| उसे प्यार और दुलार की ज़रुरत होती है ताकि वह इस अज्ञात दुनिया के भय से उबर सके |
रूथ बेनेडिक्ट सामाजिक मानवविज्ञानी कहते हैं, "उसके जन्म के समय से वह जिस पर्यावेश में पैदा होता है वे उसके जीवन अनुभव और व्यवहार को आकार देतें हैं| जब वह बात कर सकने वाला हो जाता हैं, वह अपनी संस्कृति का एक छोटा प्राणी हो जाता है, और जब वह बडा हो जाता है और इसकी गतिविधियों में भाग लेने के लिए सक्षम हो जाता है, इनकी आदतों उसकी आदतें हो जाती हैं, इनके विश्वास उसके विश्वास हो जाते हैं, इनकी असम्भावनाएं उसकी असम्भावनाएं हो जाती हैं "|
एक माँ का अपने बच्चों पर प्रभाव उनके व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ सकता हैं.
मुझे अभी भी याद है, जब मेरे बेटे का जन्म हुआ तब मैंने जब तक वह तीन साल का ना हो जाये नौकरी ना करने का फैसला लिया | जब वह तीन साल का हो गया तब मैंने एक सीनिअर शिक्षक के रूप में काम शुरू कर दिया, लेकिन मैंने एहसास किया कि मैं अपना अधिक समय उससे दूर बिता रही थी मैंने अपनी नौकरी बदल दी और मैंने एक नर्सरी स्कूल में पढ़ाना शुरू कर दिया ताकि मैं अपने बेटे की देखभाल कर सकूं और उसे अच्छे संस्कार दे सकूं आज मुझे उस पर गर्व है, वह अपनी नैतिकता की वजह से हर जगह प्यार पता है |
मुझे अभी भी याद है, जब मेरे बेटे का जन्म हुआ तब मैंने जब तक वह तीन साल का ना हो जाये नौकरी ना करने का फैसला लिया | जब वह तीन साल का हो गया तब मैंने एक सीनिअर शिक्षक के रूप में काम शुरू कर दिया, लेकिन मैंने एहसास किया कि मैं अपना अधिक समय उससे दूर बिता रही थी मैंने अपनी नौकरी बदल दी और मैंने एक नर्सरी स्कूल में पढ़ाना शुरू कर दिया ताकि मैं अपने बेटे की देखभाल कर सकूं और उसे अच्छे संस्कार दे सकूं आज मुझे उस पर गर्व है, वह अपनी नैतिकता की वजह से हर जगह प्यार पता है |
परमेश्वर ने मेरे बेटे के पालन-पोषण करने का जो ज्ञान मुझे दिया उसके लिए मैं उसे धन्यवाद देती हूँ|
तो तुम्हें पता होना चाहिए परमेश्वर ने तुम्हें भविष्यद्वाणी और मध्यस्ता के लिए बुलाया है| जब तुम्हारे बच्चे घर से बहार जाएँ उनके लिए मध्यस्ता करो
जब तुम्हारे पति घर से बहार जाएँ उनके लिए मध्यस्ता करो
अपने बच्चों के जीवन में ज्ञान और बुद्धी बोलो
आप जो भी बोलोगे, कोई भी उसे उनके जीवन से मिटा सकने में सक्षम ना होगा | मैं एक पत्रिका से आपको यह कहानी बताने जा रही हूँ (क्लार्गी जर्नल, अप्रिल 1993. पेज 36)
"रूफ़स जोन्स अक्सर अपने बचपन की कहानी को बताया करता था ऐसा लगता है कि एक दिन जब वह 12 या 13 साल का था, उसकी माँ जब शहर गयी, तो उसे खेत पर कुछ काम करने को दे गयी| वह पूरी तरह से काम करना चाहता था, लेकिन उसके दोस्तों के 'खेलने के इशारे ज्यादा जोर पकड़ गए| पर जब उसने शाम अपनी माँ की कार को रास्ते पर आते देखा तो उसका दिल डूब गया| वह जानता था कि वह एक अपने जीवन की सबसे खराब पिटाई खाने जा रहा था | उसकी माँ ने गाड़ी पार्क की और घर में आयीं | उन्होंने सीधा उसकी आँखों में देखा| उन्हें कुछ भी पूछने की ज़रुरत नहीं थी| "रूफ़स ने कहा कि वह हमेशा याद रखेगा कि आगे क्या हुआ होगा यह उसे इतना प्रभावित कर गयी जितनी कोई सजा न कर सकी| उसकी माँ उसे बेडरूम में ऊपर ले गयी,और उसके पास घुटनों के बल बैठ गयी, उसे अपनी बाहों में लिपटा लिया, और आंसू से भरे चहरे के साथ बार-बार एक ही प्रार्थना करने लगी कि 'हे प्रभु, इससे एक इंसान बना दो, इससे एक इंसान बना दो .' "यह कहा जाता है कि जब भी जोन्स ने यह कहानी बतायी उसकी आवाज गंभीर हो जाया करती थे, उसकी आँखें नम हो जाया करती थीं, क्योंकि वह`एक विशेष यादगार का अनुभव था, ”खड़े खड़े प्यार की बाहों में रोना" तुम क्या करते हो जब तुम्हारे बच्चे गलती करते हैं? डांट और पिटाई ठीक है, लेकिन यह हर समय काम नहीं करता प्यार का प्रयास करे आपको बेहतर परिणाम मिलेगा यह एक और कहानी है - एक बार एक औरत ने जिप्सी स्मिथ को
लिखा उसने कहा, "भाई स्मिथ मेरा मानना है कि प्रभु चाहता है किमैं शुभ समाचार का प्रचर करूँ, लेकिन दिक्कत यह है कि मुझे मेरे12 बच्चों की देख -भाल करनी पड़ती है| मैं क्या करूँ?" उसने उत्तर में यह पत्र प्राप्त किया: " प्रिय महिला, मैं खुश हूँ कि तुम उद्धार पा चुकी हो और प्रचार के लिए बुलाहट महसूस करती हो, लेकिन मैं इससे और भी अधिक खुश हूँ कि प्रभु ने पहले ही से12 की एक मण्डली आपको प्रदान की है!
क्या आपको पता है कि एक माँ की बुलाहट है?
क्या होगा अगर तुम दुनिया में प्रचार करो और अपने खुद के बच्चों को खो दो? जाने कि परमेश्वर तुम पर तुम्हारे परिवार के लिए भरोसा कर रहा है अब मैं तीसरी कहानी बाइबल से बताने जा रहीं हूँ पढ़ें मत्ती 20:20 21 तब जब्दी के पुत्रों की माता अपने पुत्रों के साथ उसके पास आईए और दंडवत करके निवेदन करने लगी | यीशु ने उससे कहा, "तू क्या चाहती है?" वह बोली, "आज्ञा दे कि तेरे राज्य में मेरे ये दोनों पुत्र एक तेरे दाहिने और एक तेरे बांये बैठे | सलोमी इन पुत्रों की माता थी, निः संदेह परमेश्वर ने उसे बुद्धी दी और उसने अपने पुत्रों की ज़िंदगी में जीवन बोला| इसी माता का छोटा पुत्र युहन्ना, सभी परीक्षाओं को झेल गया और अंत में वही है जिसे परमेश्वर ने भविष्य का प्रकाशन दिया | उसने बाइबल की अंतिम पुस्तक प्रकाशित वाक्य लिखी शुभ समाचार के सन्देश में सलोमी का ज़िक्र सिर्फ दो बार हुआ है| सूली पर चढ़ाये जाने के वक्त
पढ़ें मरकुस 15:40 कुछ स्त्रियाँ भी थीं, जो दूर से देख रहीं थीं, उन में मरियम मगदलीनी, छोटे याकूब और योसेस की माता मरियम तथा सलोमी थी | और पुनुरुत्थान के वक्त पढ़ें मरकुस 16:1 जब सब्त व्यतीत हो गया, तब मरियम मगदलीनी, याकूब की माता मरियम तथा सलोमी ने मसाले मोल लिए कि वे आकर यीशु पर मले| ये दोनों ही बहुत महत्वपूर्ण दृश्य हैं, और इनसे पता चलता है कि सलोमी का उद्धारकर्ता परिवार के साथ एक बहुत लंबे समय से और करीबी रिश्ता था वह अंत तक यीशु के अनुयायियों में से सबसे वफादार बनीरही यह उसका पुत्र युहन्ना था जिस पर कि यीशु ने अंत में भरोसा किया और अपनी माँ को सौंपा और उसी ने प्रकाशित वाक्य की पुस्तक लिखी और याकूब उसका बड़ा पुत्र शहीदों में प्रथम प्रेरित था| सलोमी प्रेरितों के कार्य 2 में मौजूद थी, जब पवित्र आत्मा की सामर्थ यीशु की कलीसिया को दी गयी सलोमी एक प्रचारक थी अपने पुत्रों को यीशु को देकर उसने सबसे श्रेष्ठ बात करी क्या वे यीशु के दाहिनी ओर बैठें है या नहीं? पढ़ें मरकुस 10:40
परन्तु अपने दाहिने या बाएं बैठना मेरा काम नहीं, यह उन्ही के लिए है जिनके लिए तैयार किया गया है मेरा एक प्रश्न है कि क्या परमेश्वर ने युहन्ना और याकूब को वह स्थान दिया ? हाँ! क्या उनकी माता सलोमी का उनके जीवन में कोई योगदान है? यदि हाँ, तो अवश्य ही जानों कि एक माता होने के नाते तुम्हारा भी परिवार में, अपनी संतानों के जीवन में बड़ा योगदान है फिर ऐसे में तुम भी क्या सलोमी बनाना चाहोगी? क्या कलीसिया के बनाने में खडी
होगी? क्या परमेश्वर के राज्य का प्रचार करोगी? क्या अपने बच्चों को परमेश्वर की सेवा करने के लिए तैयार करोगी? जान लीजिये सबसे अच्छी बात मैं और आप कर सकते हैं वह है यीशु को अपने बच्चों को दे दीजिये उसे उन्हें प्रयोग में लेने दें |
उसे उनका स्वामी होने दें
उसे उनका मित्र होने दें उसे उनका नियंत्रण करने दें
उसे उनके मन शरीर और आत्मा का ध्यान रखने दें
कोई भी उन्हें हरा ना सके
कोई भी उन्हें चोट पहुंचा ना सके
कोई भी उनका दिल ना तोड़ सके
कोई भी उन्हें स्पर्श ना कर सके
हमारे बच्चे यीशु की आँख का तारा बन जाएँ
तब वे संरक्षित किये जायेंगे
तब वे विजयी हो जांयेंगे
तब वे बुद्धिमान कहलायेंगे
तब वे उद्धार पाएंगे
तब वे चंगे हो जांयेंगे
तब वे परमेश्वर के बेटों और बेटियों के नाम से जाने जांयेंगे
हम माताओं को अपने काम को कभी भी छोटा ना समझाना चाहिए
माताएं ये बात अवश्य जाने कि वे सम्पूर्ण जगत में वे सबसे प्रभावशाली है
किसी को भी अनुमति ना दें कि वे आपके जीवन से इस सबसे बड़ी उपलब्धि को जो परमेश्वर ने औरत व मन को दी है चुराने पाए
बोलो - मैं सलोमी की तरह होना चाहती हूँ और मेरी संताने परमेश्वर के आशीषित सेवक है
प्रार्थना - माताएं आप अपने बच्चो के सिर पर हाथ राख कर उन्हें आशीष दे
"रूफ़स जोन्स अक्सर अपने बचपन की कहानी को बताया करता था ऐसा लगता है कि एक दिन जब वह 12 या 13 साल का था, उसकी माँ जब शहर गयी, तो उसे खेत पर कुछ काम करने को दे गयी| वह पूरी तरह से काम करना चाहता था, लेकिन उसके दोस्तों के 'खेलने के इशारे ज्यादा जोर पकड़ गए| पर जब उसने शाम अपनी माँ की कार को रास्ते पर आते देखा तो उसका दिल डूब गया| वह जानता था कि वह एक अपने जीवन की सबसे खराब पिटाई खाने जा रहा था | उसकी माँ ने गाड़ी पार्क की और घर में आयीं | उन्होंने सीधा उसकी आँखों में देखा| उन्हें कुछ भी पूछने की ज़रुरत नहीं थी| "रूफ़स ने कहा कि वह हमेशा याद रखेगा कि आगे क्या हुआ होगा यह उसे इतना प्रभावित कर गयी जितनी कोई सजा न कर सकी| उसकी माँ उसे बेडरूम में ऊपर ले गयी,और उसके पास घुटनों के बल बैठ गयी, उसे अपनी बाहों में लिपटा लिया, और आंसू से भरे चहरे के साथ बार-बार एक ही प्रार्थना करने लगी कि 'हे प्रभु, इससे एक इंसान बना दो, इससे एक इंसान बना दो .' "यह कहा जाता है कि जब भी जोन्स ने यह कहानी बतायी उसकी आवाज गंभीर हो जाया करती थे, उसकी आँखें नम हो जाया करती थीं, क्योंकि वह`एक विशेष यादगार का अनुभव था, ”खड़े खड़े प्यार की बाहों में रोना" तुम क्या करते हो जब तुम्हारे बच्चे गलती करते हैं? डांट और पिटाई ठीक है, लेकिन यह हर समय काम नहीं करता प्यार का प्रयास करे आपको बेहतर परिणाम मिलेगा यह एक और कहानी है - एक बार एक औरत ने जिप्सी स्मिथ को
लिखा उसने कहा, "भाई स्मिथ मेरा मानना है कि प्रभु चाहता है किमैं शुभ समाचार का प्रचर करूँ, लेकिन दिक्कत यह है कि मुझे मेरे12 बच्चों की देख -भाल करनी पड़ती है| मैं क्या करूँ?" उसने उत्तर में यह पत्र प्राप्त किया: " प्रिय महिला, मैं खुश हूँ कि तुम उद्धार पा चुकी हो और प्रचार के लिए बुलाहट महसूस करती हो, लेकिन मैं इससे और भी अधिक खुश हूँ कि प्रभु ने पहले ही से12 की एक मण्डली आपको प्रदान की है!
क्या आपको पता है कि एक माँ की बुलाहट है?
क्या होगा अगर तुम दुनिया में प्रचार करो और अपने खुद के बच्चों को खो दो? जाने कि परमेश्वर तुम पर तुम्हारे परिवार के लिए भरोसा कर रहा है अब मैं तीसरी कहानी बाइबल से बताने जा रहीं हूँ पढ़ें मत्ती 20:20 21 तब जब्दी के पुत्रों की माता अपने पुत्रों के साथ उसके पास आईए और दंडवत करके निवेदन करने लगी | यीशु ने उससे कहा, "तू क्या चाहती है?" वह बोली, "आज्ञा दे कि तेरे राज्य में मेरे ये दोनों पुत्र एक तेरे दाहिने और एक तेरे बांये बैठे | सलोमी इन पुत्रों की माता थी, निः संदेह परमेश्वर ने उसे बुद्धी दी और उसने अपने पुत्रों की ज़िंदगी में जीवन बोला| इसी माता का छोटा पुत्र युहन्ना, सभी परीक्षाओं को झेल गया और अंत में वही है जिसे परमेश्वर ने भविष्य का प्रकाशन दिया | उसने बाइबल की अंतिम पुस्तक प्रकाशित वाक्य लिखी शुभ समाचार के सन्देश में सलोमी का ज़िक्र सिर्फ दो बार हुआ है| सूली पर चढ़ाये जाने के वक्त
पढ़ें मरकुस 15:40 कुछ स्त्रियाँ भी थीं, जो दूर से देख रहीं थीं, उन में मरियम मगदलीनी, छोटे याकूब और योसेस की माता मरियम तथा सलोमी थी | और पुनुरुत्थान के वक्त पढ़ें मरकुस 16:1 जब सब्त व्यतीत हो गया, तब मरियम मगदलीनी, याकूब की माता मरियम तथा सलोमी ने मसाले मोल लिए कि वे आकर यीशु पर मले| ये दोनों ही बहुत महत्वपूर्ण दृश्य हैं, और इनसे पता चलता है कि सलोमी का उद्धारकर्ता परिवार के साथ एक बहुत लंबे समय से और करीबी रिश्ता था वह अंत तक यीशु के अनुयायियों में से सबसे वफादार बनीरही यह उसका पुत्र युहन्ना था जिस पर कि यीशु ने अंत में भरोसा किया और अपनी माँ को सौंपा और उसी ने प्रकाशित वाक्य की पुस्तक लिखी और याकूब उसका बड़ा पुत्र शहीदों में प्रथम प्रेरित था| सलोमी प्रेरितों के कार्य 2 में मौजूद थी, जब पवित्र आत्मा की सामर्थ यीशु की कलीसिया को दी गयी सलोमी एक प्रचारक थी अपने पुत्रों को यीशु को देकर उसने सबसे श्रेष्ठ बात करी क्या वे यीशु के दाहिनी ओर बैठें है या नहीं? पढ़ें मरकुस 10:40
परन्तु अपने दाहिने या बाएं बैठना मेरा काम नहीं, यह उन्ही के लिए है जिनके लिए तैयार किया गया है मेरा एक प्रश्न है कि क्या परमेश्वर ने युहन्ना और याकूब को वह स्थान दिया ? हाँ! क्या उनकी माता सलोमी का उनके जीवन में कोई योगदान है? यदि हाँ, तो अवश्य ही जानों कि एक माता होने के नाते तुम्हारा भी परिवार में, अपनी संतानों के जीवन में बड़ा योगदान है फिर ऐसे में तुम भी क्या सलोमी बनाना चाहोगी? क्या कलीसिया के बनाने में खडी
होगी? क्या परमेश्वर के राज्य का प्रचार करोगी? क्या अपने बच्चों को परमेश्वर की सेवा करने के लिए तैयार करोगी? जान लीजिये सबसे अच्छी बात मैं और आप कर सकते हैं वह है यीशु को अपने बच्चों को दे दीजिये उसे उन्हें प्रयोग में लेने दें |
उसे उनका स्वामी होने दें
उसे उनका मित्र होने दें उसे उनका नियंत्रण करने दें
उसे उनके मन शरीर और आत्मा का ध्यान रखने दें
कोई भी उन्हें हरा ना सके
कोई भी उन्हें चोट पहुंचा ना सके
कोई भी उनका दिल ना तोड़ सके
कोई भी उन्हें स्पर्श ना कर सके
हमारे बच्चे यीशु की आँख का तारा बन जाएँ
तब वे संरक्षित किये जायेंगे
तब वे विजयी हो जांयेंगे
तब वे बुद्धिमान कहलायेंगे
तब वे उद्धार पाएंगे
तब वे चंगे हो जांयेंगे
तब वे परमेश्वर के बेटों और बेटियों के नाम से जाने जांयेंगे
हम माताओं को अपने काम को कभी भी छोटा ना समझाना चाहिए
माताएं ये बात अवश्य जाने कि वे सम्पूर्ण जगत में वे सबसे प्रभावशाली है
किसी को भी अनुमति ना दें कि वे आपके जीवन से इस सबसे बड़ी उपलब्धि को जो परमेश्वर ने औरत व मन को दी है चुराने पाए
बोलो - मैं सलोमी की तरह होना चाहती हूँ और मेरी संताने परमेश्वर के आशीषित सेवक है
प्रार्थना - माताएं आप अपने बच्चो के सिर पर हाथ राख कर उन्हें आशीष दे
Yes Mothers, You Have a Calling!
Birth is a child’s first experience when he goes away from the warm, protected environment of his mother’s womb. He needs love and cuddling in order to overcome his fear of this unknown world.
Ruth Benedict, the social anthropologist says, “From the moment of his birth the custom in which he is born shapes his life experience and behavior. By the time he can talk, he is a little creature of his own culture, and by the time he is grown and able to take part in its activities, its habits are his habits, its beliefs are his beliefs, its impossibilities are his impossibilities.”
The influence a mother has on her children can be lasting impact on their personality.
I still remember, when my son was born I decided to quit the job till he was three year old. When he became three I started working as a secondary teacher but soon I realized the hours I was spending away from him were longer, I changed my job, I began to teach in a nursery school, so that I could take care of my son and give him good values. Today I am proud of him, he is well loved everywhere because of his ethics.
I thank God for the wisdom He gave me to raise my son.
Are you a mother?
Then you must know God has called you for the ministry of prophesy and intercession.
When your children go out you intercede for them
When your husband goes out you intercede for him
Speak wisdom upon your children’s life.
Whatever you will speak, no one will be able to omit that from their lives.
I tell this story from a journal (Clergy Journal, Apr 1993. Page 36)
"Rufus Jones often told a story from his childhood: It seems that one day when he was 12 or 13, his mother went to town, leaving him behind on the farm with some chores. He fully intended to do the work, but his friends' beckoning to play grew too loud. "When he saw his mother's car pull into the driveway that evening, his heart sank. He knew he was in for one of the worst whippings of his life. His mother parked the car and came into the house. She looked him straight in the eye. She didn't have to ask. "Rufus said he would always remember what happened next. It affected him as no whipping ever could. His mother took him upstairs into the bedroom, knelt down beside him, wrapped him in her arms, and, with tears streaming down her face, prayed one phrase over and over: `Lord, make a man out of him. Lord, make a man out of him.' "It is said that whenever Jones told that story his voice would grow quiet, his eyes misty, as he remembered that special feeling of `standing in the weeping arms of love.'"
What do you do when your children make mistakes?
Scolding and spanking is ok, but it does not work all the time.
Try love you will find better results.
This is another story- A woman once wrote Gipsy Smith, She said, "I believe the Lord wants me to preach the Gospel, Brother Smith, but the trouble is that I have 12 children to raise! What shall I do?" She received this letter in reply: "My dear lady, I am happy to hear that you have been saved and feel called to preach, but I am even more delighted to know that God has already provided you with a congregation of 12!
Do you know what is a mother’s calling?
What if you preach the world and your own children are lost?
So know thatGod is trusting in you for your family!
Now I am going to tell the third story from Bible
Read Matthew 20:20-21
Then the mother of Zebedee's sons came to Jesus with her sons and, kneeling down, asked a favor of him.
"What is it you want?" he asked. She said, "Grant that one of these two sons of mine may sit at your right and the other at your left in your kingdom.
Then the mother of Zebedee's sons came to Jesus with her sons and, kneeling down, asked a favor of him.
"What is it you want?" he asked. She said, "Grant that one of these two sons of mine may sit at your right and the other at your left in your kingdom.
Salome was the mother of these sons. No doubt God gave her wisdom to speak life in her sons' lives. John the younger son of this mother, could survive all trials and ultimately he is the one who God gave the revelation for future. He wrote the book of Revelation, the last book of Bible.
In the Gospels, Salome appears in only two instances: the Crucifixion
Read mark 15:40 Some women were watching from a distance. Among them were Mary Magdalene, Mary the mother of James the younger and of Joses, and Salome.
And the Resurrection,
Read mark 16:1 When the Sabbath was over, Mary Magdalene, Mary the mother of James, and Salome bought spices so that they might go to anoint Jesus' body.
These both are very important scenes, and both indicates that Salome had of a very long and close relationship with the Savior's family
she remained one of the most faithful followers of Jesus till the end.
It was to her son John that Jesus entrusted His own mother at the end and he wrote the Book of Revelation
And James her another son was the first apostle to be martyred.
Salome was present in Acts 2, when the power was given to the body of Christ
Salome was an evangelist
Offering her sons to Jesus was the best thing Salome could do
Are they at the right hand of Jesus or not?
Read Mark 10:40
but to sit at my right or left is not for me to grant. These places belong to those for whom they have been prepared
I have a question, did God give that place to John and James?
Yes!
Did their mother Salome contribute something to their lives?
If yes, then you as mothers must know that you also have a great deal to do for your family
would you like to be like Salome?
Will you be a help for the building the body of Christ?
What have you desire about your children to be?
Let me tell you, the best thing I and you can do is to give our children to Jesus
Let him use them
Let him be their master
Let Him be their friend
Let him be in control
Let him take care of their mind body and soul
Let no one defeat them
Let no one hurt them
Let no one break their hearts
Let no one touch them
Let our children become the apples of Jesus eye
Then they will be protected
They will be victorious
They will be wise
They will be delivered
They will be healed
They will be called sons and daughters of God
We must never lessen the roles God has assigned each of us in life.
Mothers you must understand that you are the most influential people in the entire world.
Don't let anyone rob you of your calling as a woman and mother.
Say- I want to be like Salome, and my children are anointed servants of God
Prayer- Mothers lay hands on your children and bless them
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