Friday, April 2, 2010

Lesson 12 The Fruit of the Spirit is Truth/आत्मा का फल सच्चाई है,John युहन्ना 14 & 16, 1 Corinthians कुरंथियों 9, Romans रोमियो14


Copr. 2010, Bruce N. Cameron, J.D.  All scripture references are to the New International Version (NIV), copr. 1973, 1978, 1984 International Bible Society,  unless otherwise noted. Quotations from the NIV are used by permission of Zondervan Bible Publishers. http://www.GoBible.org. Pray for the guidance of the Holy Spirit as you study.
परिचय: टोबी कीथ के एक गाने की पंक्ति है कि "मेरी मर्जी थी कि मुझे अभी वो नहीं पता होना था जो मुझे पहले पता नहीं था". क्या तुम्हारा जीवन के प्रति यह द्रष्टिकोण है? अगर कुछ बुरा हो गया तो तुमने यह इच्छा करी काश मै यह नहीं सुनता? और सत्य जानना हमेशा अच्छा होता है? बाइबिल पुराने नियम के नायकों का आश्चर्यजनक सच्चा लेखा प्रस्तुत करती है. यह सुझाती है कि जानना हमेशा अच्छा होता है.लेकिन दूसरी तरफ, ऐसा लगता है कि पौलुस कह रहा है कि हमेशा उदार होना भी ठीक नहीं है. मेरे  जीवन में, सत्य दो प्रकार से आता है. पहला परमेश्वर के बारे में सत्य, मोक्ष तथा दुनिया का चलन. दूसरा, मेरे जीवन के बारे में सत्य एवं दूसरों के जीवन के बारे में सत्य.निसंदेह मै परमेश्वर के बारे में सत्य जानना चाहूँगा.जैसे सत्य अपने बारे में.....चलो हम लोग बाइबिल अध्यन करे और देखे, बाइबिल सत्य के बारे में क्या सिखाता है!    
I. परमेश्वर के बारे में सत्य 
A. पढ़े युहन्ना 14:1-4. आपके जीवन में यीशु का कथन कितना जरूरी है? (इस से ज्यादा कुछ जरूरी नहीं. बाइबिल 1 कुरंथियो 15:19: "यदि हमने केवल अपने इस भौतिक जीवन के लिए ही यीशु मसीह में अपनी आशा रखी है तब तो हम और सभी लोगों से अधिक अभागे है.")   
1. सच्चाई का विश्वास के साथ क्या सम्बन्ध है? यीशु ने पहले कहा मेरे ऊपर विश्वास करो उसके बाद उसने यह जरूरी बयान दिया. ( हमे नहीं पता कि मनुष्यों पर कैसे भरोसा करे यदि उनके ऊपर विश्वास नहीं है.)  
A. पढ़े युहन्ना 14:5-7. यीशु ने थोमा के प्रश्न का कैसे उत्तर दिया? (यीशु ने कहा वो ही रास्ता है) 
1. चलो हम लोग यीशु के कथन की और जाँच करे. यीशु के इस कथन से कि "वो ही रास्ता,सत्य एवं जीवन है" से क्या मतलब है?
a. कौन सा "रास्ता" चर्चा में है? (स्वर्ग का रास्ता. अनंत जीवन का मार्ग) 
a. कौन से सत्य की यीशु बात कर रहा है? ( इस पूरे वार्तालाप का विषय अनंत जीवन के बारे में सत्य है.)  
a. यीशु कैसे "जीवन" है? (अनंत जीवन परमेश्वर को जानने एवं स्वीकार करने से मिलता है.हम लोग पिता के पास यीशु के द्वारा आते है.)
1. मैंने दलाई लामा की शिक्षा का अध्ययन  किया, मैंने काफी कुरान भी पढ़ी. मुझे ऐसा लगता है कि बोद्धधर्मी की शिक्षा की अपना जीवन कैसे जिए यीशु के द्वारा पहाड़ के ऊपर जो उसने जो उपदेश हम लोगों को दिया था उसके काफी करीब है. इस्लाम,आश्चर्यजनक रूप, से पुराने नियम के बड़े भाग को सत्य के रूप में स्वीकार करता है.यहूदी धर्म पुराने नियम के सत्य को पूरा स्वीकार करता है और यीशु यहूदी थे!. इन समानताओं के कारण, मैंने पहले ही यह अपेक्षा करी थी क्या दुनिया के अन्य मुख्य धर्म परमेश्वर के सच की ओर का रास्ता है. यीशु ने इस बारे में क्या कहा?(नहीं." कोई भी पिता के पास मेरे बगैर नहीं आता है.")
a. यीशु के दावे के पीछे क्या तर्क है क्या तुम समझ सकते हो? और,क्या यह कुछ ऐसा है जो समझ से परे है,और यदि स्वीकार किया है तो विश्वास के साथ स्वीकार करो. मै दुनिया के धर्मो का विशेषज्ञ नहीं हूँ,लेकिन मै यह जानता हूँ कि सब मनुष्यों के कार्यों पर निर्भर है.आज्ञाकारिता, तुमको स्वर्ग अथवा उसके अगले स्तर पर ले जाति है.रोमियो 3 बताता है जिसे मै सत्य समझता था - हम सब दुष्ट है.केवल मसिहत हमें सिखाती है कि परमेश्वर ने हमारे लिए आज्ञा मानी, परमेश्वर हमारे पापो के कारण मरा,और परमेश्वर ने हमारे लिए पापो और मौत पर विजय पाई.हम अपने लिए स्वर्ग का रास्ता नहीं बना सकते है.यह सिर्फ परमेश्वर है.निश्चय ही,"पिता  के पास कोई भी मनुष्य यीशु के बगेर नहीं पहुँच सकता है!")         
 A. युहन्ना 16 में, यीशु अपने शिष्यों के साथ इस वार्तालाप में है कि वो वास्तव में स्वर्ग जा रहा है. पढ़े युहन्ना 16:12.यह परमेश्वर हम को सच बता रहा है उसके के बारे में क्या संकेत देता है? ( वो हमें हमेशा पूरी बातें नहीं बताता है.) 
1. क्या तुम तोबी कीथ के तनाव के बारे में सुन रहे हो? क्या यह उचित है कि पूरी कहानी न बताए?  
a.  क्या इससे कोई फर्क पड़ता है कि परमेश्वर तुम्हरी जगह निर्णय कर रहा है? 
a. अब हामरे पास दो हज़ार साल कि पश्च द्रष्टि है. क्या तुम यीशु के साथ यह मानते हो कि पूरी कहानी उसके शिष्यों के लिए बर्दाश्त करना मुश्किल हो जाता?   

I.  पवित्र आत्मा एवं सत्य 

A. पढ़े युहन्ना 16:13 -15. हमको सत्य जानने की प्रक्रिया में पवित्र आत्मा की क्या भूमिका है? ( वो हमारा मार्गदर्शन करता है)  
1. एक मार्गदर्शक का उधारण हमारे कार्य के बारे में क्या कहता है? (पढ़े यिर्मयाह 29:13. खोजी मार्गदर्शक को देखते है.यहाँ खोजी का जिक्र यह सुझाता है कि हमे सत्य कि तलाश करनी है.परमेश्वर हमे कहता है हमे उसकी खोज [अपने] पूरे हृदय के साथ करनी है.")    
A. पढ़े युहन्ना 16:7-11. पवित्र आत्मा का एक कार्य सत्य के साथ है कि " दुनिया को उसके अपराधों का बोध कराये....धार्मिकता एवं निर्णय." जब हम सत्य के बारे में सोचते है, यह सही जानकारी सुनने के बारे में है? (सत्य का एक हिस्सा है कि तथ्य कि जानकारी. एक ज्यादा जरूरी हिस्सा सत्य के बारे में है कि हमे सारे तथ्यों कि जानकारी हो और हमे इसे गंभीरतापूर्वक लेना  होगा. लोग जानते है कि धुम्रपान तुम्हरे लिए ठीक नहीं है,लोग यह जानते निश्चित वजन से ऊपर होना तुम्हरे लिए ठीक नहीं है. लेकिन यहाँ पर यह प्रश्न है क्या तुम इस चेतावनी को गंभीरतापूर्वक लेते हो. 
1. सत्य को गंभीरतापूर्वक जानने में पवित्र आत्मा किस प्रकार कार्य करता है? ( केवल पवित्र आत्मा ही अपराध बोध कि भावना पैदा करता है.) 
1. पवित्र आत्मा की क्या भूमिका है हमारी इस चेष्टा में कि पवित्र शास्त्र का सत्य दूसरे लोग भी  जाने?(फिर से, पवित्र आत्मा की भूमिका है कि सत्य जानने की अपराधबोध की भावना लाये.)   
A. अभी हमने "आंशिक सत्य" के बारे में चर्चा करी है. युहन्ना 16:13 हमे परमेश्वर एवं पूर्ण सत्य के बारे में क्या बताता है? (पवित्र आत्मा हमे "पूर्ण सत्य" की तरफ ले जायेगा) 
 1. यदि तुम्हे ज्ञान होता की संपूर्ण सत्य तुम्हे प्रकट हो जायेगा,लेकिन परमेश्वर ने तुम्हारे फायदे  के लिए संपूर्ण रहस्योद्घाटन का  एक समय रखा,क्या तुम्हरे लिए यह संतोषजनक था?         
1. क्या यह प्रस्ताव हम दूसरों के भी साथ ले? उनको पूर्ण सत्य बता दे- लेकिन पूरा एक साथ नहीं?  
I. हमारी सच्चाई 
A. पढ़े 1 कुरंथियो 9:19.पौलुस का दूसरों को परवर्तित करने के बारे में क्या रुख है? (कि वो अपने अधिकार छोड़ कर दूसरों को यीशु के समीप लाये.)    
A. पढ़े 1 कुरंथियो 9:20-22. पौलुस के इस ढंग एवं सत्य से तुम क्या सोचते हो? 
1.  क्या यह वो प्रस्ताव है कि उनको "एक बार में थोड़ा सत्य बताओ"? 
a. क्या यह विषय हमे पौलुस के ढंग के बारे में काफी जानकारी देता है कि हम उसका मूल्यांकन  कर सके ?  

A. पढ़े रोमियो 14:13-18.क्या जब आहार की बात आती है उसमे संपूर्ण सत्य है?(स्पष्ट रूप से नहीं.पौलुस कहता है कि उसकी एक राय है, लेकिन किसी और की भिन्न राय है तो वो उससे बंधे हुए है.)   
1.जब पौलुस रोमियो 14:15 में बताता है " अपनी भोजन प्रक्रिया से अपने भाई का नाश ना करो जिसके लिए यीशु मरा," वो यहाँ क्या सलाह दे रहा है?    

a. क्या वो यह सलाह दे रहा है कि जो भी मतभेद में है उसका खाना ठीक है, लेकिन "भाई" के सामने नहीं?  
(1) क्या इसका मतलब है कि तुम सोचते हो यह खाना ठीक है तुम अपने भाई को भ्रमित कर रहें हो?  
A. पढ़े रोमियो 14:22-23. यह सत्य के बारे में क्या सुझाता है? (हमलोग परमेश्वर को जवाब देने के उत्तरदायी है.हमें पूरा पारदर्शी होने की आवश्यकता नहीं है अगर हम यह सोचते हैं कि साथी मसीह भाई को यह नुकसानदायक  होगा.)     
1. क्या यह पाखंडी होने का अधिकार है? 
1. क्या यह मसीह विश्वासियो से पाप छुपाने का अधिकार है? (पढ़े रोमियो 14:1.यह "विवादस्पद वस्तु" का विषय है. वास्तविक झूठ को छुपाने की कोशिश करना पूरी तरह से झूठ पर झूठ जोड़ने के बराबर है.लेकिन विवादस्पद वस्तु का एक वर्ग है,जिसमे एक व्यक्ति की कार्यवाही उसके लिए पाप हो सकती है और दूसरे के लिए नहीं.उस छोटे क्षेत्र में, सत्य दूसरों के भले के लिए एक कारण बन जाता है.)
a. जब तुम झूठ बोलते हो,तुम किसके लिए देख रहें हो? (झूठ सामान्यता अपनेआप को बचाने के लिए बोलते है. पौलुस झूठ की सलाह नहीं दे रहा है, वो सिर्फ इस बात की सलाह दे रहा है कि हम विवादस्पद विषयों पर मुहं बंद रखे.)   
A. दोस्त, तुम और सत्य कैसा है? क्या तुम अपने आप को परमेश्वर का सत्य जानने के लिए पूरे ह्रदय से समर्पित करोगे? क्या तुम पवित्र आत्मा के सहयोगी बनने के लिए अपने आप को समर्पित करोगे जिससे तुम ज्यादा सत्य जान सको एवं दूसरो के साथ सत्य बाँट सको? सत्य  के बारे में तुम्हरे विचार किस तरह से साथी विश्वासियो को असर करते है इस बारे में क्या तुम संवेदनशील एवं समर्पित हो सकते हो?   
I. अगले हफ्ते: आत्मा का फल : मसीह व्यक्ति के चरित्र का सार
Introduction: Toby Keith sings a song containing this line, “I wish I didn’t know now what I didn’t know then.” Is that your view of life?  Something unpleasant has happened and you wish you had never heard about it?  Or, is knowing the truth always better?  The Bible presents an amazingly truthful account of its Old Testament heroes. This suggests that it is always better to know. On the other hand, Paul seems to suggest that being completely open is not always the best approach. In my life, truth comes in two packages. One is truth about God, salvation and the operation of the universe.  The other is truth about my life and the truth about the lives of others. I’m sure I want to know the truth about God. As to the truth about me .... Let’s jump right in and explore what the Bible has to teach us about truth!
I.               Truth About God
A.               Read John 14:1-4. How important to you is the truth of Jesus’ statement? (Nothing is more important.  The Bible says in 1 Corinthians 15:19: “If only for this life we have hope in Christ, we are to be pitied more than all men.”)
1.               What relationship does truth have to trust? Jesus calls on us to trust Him before He makes this important statement. (We don’t know whether to believe people if we cannot trust them.)
A.               Read John 14:5-7. How does Jesus answer Thomas’s question? (Jesus says that He is the way.)
1.               Let’s explore Jesus’ statement a bit more. What does Jesus mean when He says He is “the way, the truth and the life?”
a.               What “way” is under discussion? (The way to heaven. The route to eternal life.)

a.               How is Jesus the “life?” (Eternal life comes from knowing and accepting God. We come to the Father through Jesus.)
1.               I’ve read the teachings of the Dali Lama, I’ve read large sections of the Koran. It seems to me that Buddhist teachings about how to live your life are very close to what Jesus taught us in the Sermon on the Mount.  Islam, amazingly, accepts large sections of the Old Testament as truth.  Judaism accepts the truth of the entire Old Testament and Jesus was Jewish!  Because of these similarities, I’ve contemplated before whether all of these major world religions are just another approach to the truth of God. What does Jesus say about this? (No. “No one comes to the Father except through Me.”)
a.               Do you understand the logic behind Jesus’ claim? Or, is this something that is beyond reason, and must be accepted by faith, if accepted at all?(I’m not a expert in world religions, but what I know about them is that they are all based on human works. Obedience gets you to heaven or the next level. Romans 3 tells us what I observe to be the truth - we are all evil. Only Christianity teaches that God obeyed on our behalf, God died on our behalf for sin, and God overcame sin and death on our behalf. We cannot work our way to heaven. It is only God. Surely, “no one comes to the Father except through [Jesus]!”)
A.               In John 16, Jesus again gets into a discussion with His disciples about the fact that He is going to heaven. Read John 16:12. What does this suggest about God telling us the truth? (He does not always tell us the entire story.)
1.               Are you hearing strains of Tobey Keith? Is it honest not to tell the entire story?
a.               Does it make a difference that God is making this judgment instead of you?
a.               We now have two thousand years of hindsight. Do you agree with Jesus that the entire story would have been too much for the disciples to bear?
I.               The Holy Spirit and Truth
A.               Read John 16:13-15. What is the role of the Holy Spirit in helping us to understand truth? (He guides us.)
1.               What does the illustration of a guide suggest about our role? (Read Jeremiah 29:13. Explorers seek out guides. The reference to a guide suggests that we need to seek out the truth. God tells us to seek Him “with all [our] heart.”)
A.               Read John 16:7-11. Part of the Holy Spirit’s work with the truth is to “convict the world of guilt ... righteousness and judgment.” When you think about learning the truth, is it just about hearing the correct information? (Part of truth is knowing the facts. A more important part of truth is understanding the facts and taking them seriously.  People know that smoking is not good for you. People know that being overweight is not good for you. The real issue is whether you take the information seriously.
1.               What role does the Holy Spirit have in helping us to take truth seriously?(Only the Holy Spirit can bring conviction.)
1.               What role does the Holy Spirit play in our efforts to bring the gospel truth to others? (Again, it is the Spirit’s role to bring conviction of truth.)
A.               We just got through discussing the “partial truth” issue. What does John 16:13 tell us about God and the entire truth? (The Holy Spirit will lead us into “all truth.”)
1.               If you knew that the entire truth would be revealed to you, but that for your benefit God timed the entire revelation, would that be satisfactory?
1.               Should we take that approach with others? Tell them the entire truth - but not at once?
I.               Our Truth
A.               Read 1 Corinthians 9:19. What is Paul’s attitude about converting others? (That he gives up his own rights to bring others to Jesus.)
A.               Read 1 Corinthians 9:20-22. What do you think about Paul’s methods and the truth?
1.               Is this a “give them part of the truth at a time” approach?

a.               Does this text give us enough information to make an informed judgment on Paul’s methods?
A.               Read Romans 14:13-18. Is there absolute truth when it comes to diet? (Apparently not. Paul says that he has one view, but if someone else has a different view, they are bound by that view.)
1.               When Paul instructs us in Romans 14:15 “Do not by your eating destroy your brother for whom Christ died,” what is he suggesting?
a.               Is he suggesting that it is okay to eat whatever is in dispute, but just not in front of the “brother?” 
(1)           Does that mean you are misleading your brother about what you think is all right to eat?
A.               Read Romans 14:22-23.  What does this suggest about truth? (We are accountable to God. We do not need to be completely transparent with fellow believers if we think it would harm them.)
1.               Is this an authorization to be a hypocrite?
1.               Is this an authorization to hide sin from fellow believers? (Read Romans 14:1. The topic is “disputable matters.”  Lying to hide true sin is simply adding sin to sin. But there is a category of disputable matters, in which an action can be sin for one person and not sin for the other. In that narrow area, truth turns on consideration for the welfare of others.)
a.               When you lie, who are you looking out for? (Lies are generally to protect ourselves.  Paul is not suggesting lies, he is just suggesting keeping our mouth shut on certain disputable issues.)
A.               Friend, how are you and truth? Will you commit today to seek the truth of God with all of your heart?  Will you commit to partner with the Holy Spirit to both learn more truth and share it with others?  Will you commit to being sensitive about how your view of the truth impacts fellow believers?
I.                    Next week: The Fruit of the Spirit: The Essence of Christian Character.

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